सर्दियों में गर्म और गर्मियों में रहती है ठंडी, अद्भुत, बेमिसाल मसूरी की पीली कोठी

क्लू टाइम्स, सुरेन्द्र कुमार गुप्ता। 9837117141

इतनी शानदार कोठी का मालिक कौन है और इसकी इतनी दुर्दशा क्यों है? जहन में इस तरह के सवाल उठते रहते हैं, पर कोठी से नजरें नहीं हट पाती हैं.

गाजियाबाद जिले के मसूरी की पीली कोठी। साभार- सो. मीडिया।

हापुड़। यदि आप दिल्ली से मुरादाबाद-लखनऊ की ओर जा रहे हैं, तो मुरादाबाद 133 मील के पत्थर के बाईं ओर मसूरी में एक पीले रंग की कोठी एकाएक आपका ध्यान अपनी ओर आकर्षित करती है। कुछ अलग हट कर बनी कोठी को लेकर जहन में सवाल खड़े होने लगते हैं कि आखिर इतनी शानदार कोठी का मालिक कौन है और इसकी इतनी दुर्दशा क्यों है? जहन में इस तरह के सवाल उठते रहते हैं, पर कोठी से नजरें नहीं हट पाती हैं।

कोठी के ऊपरी सिरे पर दो चिमनी जैसा दिखाई देने वाला डिजाइन उसकी खूबसूरती को चार चांद लगाता है। हालांकि मरम्मत के अभाव में जगह-जगह से प्लास्तर झड़ने लगा है। देखकर लगता है कि काफी दिन से उसकी रंगाई पुताई भी नहीं हुई है। 1864 में बनीं इस कोठी का नक्शा भी इंग्लैंड का बना हुआ है। इस कोठी में कई फिल्म और सीरियल की शूटिंग हो चुकी है।

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158 साल पुरानी है पीली कोठी

ईस्ट इंडिया कंपनी ने इस कोठी का निर्माण 1864 में कराया था। कोठी का रकबा 20 बीघा है, जिसमें से करीब तीन बीघा जमीन पर कोठी बनी है। कोठी में 36 शानदार कमरे हैं। कोठी को कुछ इस तरह से डिजाइन किया गया है कि सर्दियों के दिनों में गर्म और गर्मियों के दिनों में ठंडक रहती है।


इसके बाद भी अधिक सर्दी पड़ने पर कोठी को गर्म करने के लिए सभी कमरों में आतिशदान बनाए गए हैं। जिसमें लकड़ी जलाने के बाद कमरे का तापमान सामान्य हो जाता है। अधिक गर्मी पड़ने पर एक कूलर भी लगा था। जो मिट्टी के तेल से चलता था। जो जंग लगकर खराब हो चुका है।


कोठी को देखने में दो से तीन घंटे का लगता है समय

यदि आपके मन में इस कोठी को देखने की इच्छा है, तो कम से कम दो से तीन घंटे का समय लगता है। एक तो कोठी विशाल है। साथ ही कोठी को जिस तरह से डिजाइन किया गया है उसे समझने में समय लगता है, क्योंकि जो भी सामान यहां रखा है आदमी एकटक देखता रह जाता है।

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कोठी में हर चीज का पूरा ख्याल रखा गया है। एक बड़ा डाइनिंग रूम बना है। जिसमें एक लकड़ी की टेबल लगी थी (हाल में इस टेबल को हटा दिया गया है)। इस हाल में दो बड़े लैंप लगे हैं। जिनमें मिट्टी का तेल डालकर जलाया जाता था। बाद में बिजली की व्यवस्था होने पर उसमें बिजली के बल्ब लगाए गए हैं।

इन लैंपों को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि यदि आप पढ़ना चाहते हैं, तो उन्हें हल्के से सहारे से नीचे की ओर लाया जा सकता है और रोशनी के लिए ऊपर किया जा सकता है। इस कोठी में आज भी बेल्डियम के बड़े-बड़े छह शीशे लगे हैं जो कमरों की सौंदर्य को बढ़ाते हैं।

कोठी में शीशम और सागौन की लकड़ी से साज सज्जा की गई है। दरवाजे शीशम की लकड़ी के बने हैं। जो आज भी पूरी तरह से सुरक्षित हैं। कमरों के कोने में रखने के लिए छोटे-छोटे स्टूल बने हैं जो एकाएक आपका ध्यान अपनी ओर खींच लेते हैं। अलग-अलग कमरों में लकड़ी की छह अलमारी रखी हैं। जो अपने होने का अहसास कराती हैं। छत पर जाने के लिए कोठी के अंदर ही लकड़ी की सीढ़ी बनीं थीं जिन्हें रखरखाव के अभाव में दीमक चाट चुकी है।


कोठी के लिए लगाया गया था ईंट भट्टा

कोठी बनाने के लिए एक ईंट भट्टा लगाया गया। इसमें करीब पांच किग्रा की ईंट तैयार कराई गई। इससे ही कोठी का निर्माण किया गया। गोरे होने के कारण और अपनी श्रेष्ठता को मनवाने के लिए क्षेत्र में पक्की ईंट का मकान बनाने पर पाबंदी लगा दी थी। जिससे क्षेत्र में अकेली कोठी उनकी नजर आए।

दिल्ली जाने के लिए बनाया गया था रेलवे स्टेशन

दिल्ली जाने के लिए डासना में रेलवे स्टेशन बनाया गया था। कोठी से रेलवे स्टेशन के लिए अलग से लाल सड़क बनाई गई थी। जिस पर किसी को चलने की इजाजत नहीं थी। इस पर सिर्फ माइकल की बेटी एएल कोपिंगर (जिन्हें मिस साहब के नाम से जाना जाता था) की बग्गी जाती थी। समय के साथ अंग्रेजों का वर्चस्व बढ़ने लगा था, जिससे उनकी स्थिति मजबूत हो गई थी।

इसके चलते ही आस-पास की निगरानी से माइकल को मुक्त कर दिया गया था। जिंदगी के आखिरी पड़ाव में माइकल कर्ज में फंसते चले गए थे। माइकल ने यह कोठी अपनी बेटी के नाम कर दी थी। कुछ सालों पर कोठी का मालिकाना हक एक बार फिर बदल गया, जब माइकल ने अपनी बेटी कापिंगर की शादी अपने मैनेजर करकनल से कर दी थी।

कापिंगर की मौत के बाद करकनल इस कोठी के मालिक बन गए। गोरे होने के कारण करकनल अपने को भारतीयों से श्रेष्ठ मानते थे। उन्होंने बेटे और बेटी को पढ़ने के लिए इंग्लैंड भेज दिया और खुद अकेले यहां रहते थे। अपने को श्रेष्ठ समझने वाले करकनल भारत आजाद होने के बाद भी इंग्लैंड नहीं लौटे। इसी दौरान 1952 में जमींदारा उन्मूलन एक्ट आ गया और उनके कब्जे में आने वाले किसानों को लगान देने से छुट्टी मिल गई।

इससे करकनल की स्थिति बहुत अधिक बिगड़ गई और उन्होंने अवैध रूप से जमीन बेचनी शुरू कर दी। यहां तक कि गांवों के चरवाहों को भी बेच दिया। इतना ही नहीं डीसीएम कंपनी को भी 40 बीघा जमीन बेच दी। यह मामला कोर्ट चला गया और हाईकोर्ट के आदेश पर इस जमीन को पुनः एलएमसी घोषित कर दिया गया।

करकनल ने 1977 में बेच दी कोठी

माली हालत खराब होने के बाद करकनल को खर्चा चलाने में दिक्कत होने लगी थी। उन्होंने अपनी कोठी बेचने के लिए अपने यहां काम करने वाले जमादार से कहा कि कोई ऐसा मोजिज्ज व्यक्ति ढूंढो जो इस कोठी को ले सके। जमादार ने इस बावत दूध व्यापारी हाजी नजीर अहमद से कोठी खरीदने की बात कही। हाजी नजीर ने पीली कोठी को तीन लाख रुपये में खरीद लिया।

करकनल कोठी बेचकर इंग्लैंड लौट गए। हाजी नजीर के बाद उनके सांसंद बेटे अनवार अहमद के पास आ गई। हाल में यहां अनवार अहमद के पुत्र ताहिर अहमद और इफ्तिखार अहमद परिवार के साथ रहते हैं।

कई फिल्मों की भी हुई है शूटिंग

अपने में अलग दिखने वाली इस कोठी में कई फिल्मों और सीरियल की शूटिंग भी हुई है। जिसमें सुपर-6, रन और भंवर जैसे कई हारर सीरियल की शूटिंग भी यहां हो चुकी है। करीब 20 वर्ष पहले अभिषेक बच्चन भी रन फिल्म की शूटिंग के लिए यहां आए थे। अभिषेक दिल्ली में ठहरते थे और दिन में इस कोठी में शूटिंग करने आते थे। कहां तक आसमां फिल्म की शूटिंग 15 दिनों तक यहां हुई थी।

दुबई की कंपनी ने किराए पर लेने के लिए किया था संपर्क

हाल में कोठी की सही से देखरेख नहीं होने के कारण लगातार उसका क्षरण होता जा रहा है। प्लास्तर गिर रहा है और पुताई हुए भी एक अरसा बीत चुका है। हाल में कई नौकर चाकर रखे गए हैं, इसके बाद भी इसकी सफाई पूरी नहीं हो पाती है। कोठी के मालिक ताहिर अहमद बताते हैं कि हम और हमारा परिवार चाहता है कि इस धरोहर को संजोया जाए। पिछले दिनों एक दुबई की कंपनी ने इसे किराए पर लेने के लिए संपर्क किया था। पर कुछ कारणों से बात नहीं बन पाई थी। कोठी की देखरेख कम होने के पीछे वह पारिवारिक विवाद बताते हैं।