मित्र (कविता)

 क्लू टाइम्स। मोदीनगर, सुरेन्द्र कुमार गुप्ता, 9837117141


मित्र  (
कविता)

पड़े पीठ पे जोर की थप्पी

समझ लेना मित्र आया है... 


चुपके से आ आँखें ढंक ले

समझ लेना मित्र आया है... 


गले मिलने जब जो फड़के

समझ लेना मित्र आया है... 


उंचे स्वर में नाम ले पुकारे

समझ लेना मित्र आया है... 


बिन कहे आ जाए घर में

समझ लेना मित्र आया है... 


चेहरा देख उदासी भांपले

समझ लेना मित्र आया है... 


फैसले को जब टास उछले

समझ लेना मित्र आया है... 


तु-तुकारे जब सुनाई दे तो

समझ लेना मित्र आया है... 


जेब ढीली करने मे हों झगड़े

समझ लेना मित्र आया है... 


डांट पड़े जब गलती पर

समझ लेना मित्र आया है... 


भूमिका मे ही कथा पढ़ ले

समझ लेना मित्र आया है... 


खुल जाएं बंद किताब के पन्ने 

समझ लेना मित्र आया है... 


खाते देख संग बैठ जाए

समझ लेना मित्र आया है... 


रात लड़े सुबह खुद आ जाए

समझ लेना मित्र आया है...