श्रीलंका में बीते राजपक्षे परिवार के दिन? राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, वित्त मंत्री, बोया भारत के खिलाफ जहर, देश को किया कंगाल

 क्लू टाइम्स, सुरेन्द्र कुमार गुप्ता। 9837117

श्रीलंका में बीते राजपक्षे परिवार के दिन? राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, वित्त मंत्री, बोया भारत के खिलाफ जहर, देश को किया कंगाल

श्रीलंका में मौजूदा संकट की शुरुआत 2019 में राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के तहत सरकार बनने के बाद शुरू हुई थी। श्रीलंका की बड़ी आबादी के बीच महिंद्रा राजपक्षे ने भारत विरोधी भावनाएं भड़काने की कोशिश में सफलता भी हासिल कर ली वहीं दूसरी ओर वो चीन के साथ गलबहियां करते दिखें।

राजनीति एक बहुत बढ़िया व्यवसाय बन गया है, जिसमें कोई शैक्षिक योग्यता नहीं चाहिए, ना ही उम्र का कोई तकाजा है। मजेदार बात यह भी है कि इसमें सेवा निवृत्ति यानि रिटायरमेंट की भी कोई उम्र तय नहीं है। लेकिन क्या अगर कि एक देश में राष्ट्रपति से लेकर प्रधानमंत्री तक, सांसद से लेकर मंत्री तक सभी एक ही परिवार से जुड़े हों। कोई भाई, कोई भतीजा, कोई चाचा तो कोई बेटा, लगेगा लगेगा एकता कपूर का कोई कहानी घर घर की टाइप टीवी शो हो गया। एक देश ऐसा भी है जहां लोकतंत्र के नाम पर मंत्रिमंडल में एक परिवार का विस्तार होता रहा। श्रीलंका के राष्ट्रपति, श्रीलंका के प्रधानमंत्री और श्रीलंका के वित्त मंत्री और अन्य तीन कैबिनेट मंत्री एक ही परिवार से आते हैं। श्रीलंका दिवालिया होने की कगार पर पहुंच चुका है। देश में महंगाई दर हट से ज्यादा बढ़ गई है। देश में हिंसक प्रदर्शन शुरू हो चुके हैं, जनता राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री से पूछ रही है कि आखिर हमारा देश कंगार क्यों हो गया है? राजपक्षे परिवार का पूरा इतिहास क्या है और श्रीलंका की जनता उनके पीछे क्यों पड़ी है। इसके साथ ही आपको बताएंगे कि तीनों भाईयों ने मिलकर कैसे भारत के खिलाफ नफरत का जहर बोया और देश को कंगाली के कगार पर पहुंचा दिया। श्रीलंका की आबादी भारत की राजधानी दिल्ली जितनी है। लेकिन इन दिनों वो एक गंभीर आर्थक संकट को फेस कर रहा है। जिसकी वजह से श्रीलंका के नागरिक सड़कों पर उतरने को मजबूर हो गए हैं। श्रीलंका में पटरी से उतरी अर्थव्यवस्था के कारण लोगों का आक्रोश थमने का नाम नहीं ले रहा है। श्रीलंका के लोगों के निशाने पर वहां की सरकार है। लोग राष्ट्रपति से इस्तीफा मांग रहे हैं।

राजपक्षे परिवार

श्रीलंका की राजनीति के वटवृक्ष यानी राजपक्षे परिवार को हम एक तस्वीर के माध्यम से आपको बताते हैं। श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे हैं। उनके तीन और सगे भाई हैं। इनमें सबसे बड़े हैं चमल राजपक्षे जो कृषि मंत्री हैं। उनसे छोटे हैं महिंद्रा राजपक्षे जो कि श्रीलंका के प्रधानमंत्री हैं। फिर गोटाबाया राजपक्षे का नंबर आता है। बासिल राजपक्षे का नंबर चौथे पर आता है और वो देश की सरकार में वित्त मंत्री हैं। इसके अलावा पीएम महिंद्रा राजपक्षे के पुत्र नवल राजपक्षे भी सरकार में खेल मंत्री हैं। कृषि मंत्री चमल राजपक्षे के पुत्र शशिद्र राजपक्षे भी सरकार में जूनियर मिनिस्टर हैं। इस हिसाब से देखें तो राजपक्षे परिवार के छह सदस्य सीधे तौर पर सरकार में हैं जिनमें एक राष्ट्रपति भी है। यही नहीं चमल राजपक्षे के छोटे पुत्र निपुणा राणावाका भी श्रीलंका की संसदीय समिति के सदस्य हैं। ये तो वे लोग हो गए जिनका सीधा खून का रिश्ता है। सरकार में ऐसे भी बहुत से मंत्री हैं जिनका राजपक्षे परिवार से खून का रिश्ता तो नहीं लेकिन कोई न कोई दूर का रिश्ता तो जरूर है। हालांकि वर्तमान हालात में महिंद्रा राजपक्षे और गोटबाया को छोड़कर सभी मंत्रियों ने अपना इस्तीफा दे दिया है। 

ब्रिटिश राज में मुखिया थे राजपक्षे के दादा

श्रीलंका के हंबनटोटा जिले के गिरुवापट्टवा गांव के ग्रामीण भू स्वामी परिवार से सियासत के इस बड़े राजवंश का उभार हुआ। परिवार की जड़े राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के दादा डॉन डेविड राजपक्षे से जुड़ी हैं। औपनिवेशिक काल में उस वक्त के सीलोन यानी वर्तमान के श्रीलंका में मुखिया प्रणाली चलन में था। जिसें विदान अराची हुआ करता था, जिसके पास इलाके में शांति स्थापित करने, कर इकट्ठा करने और न्यायिक कामों में सहायता की जिम्मेदारी होती थी। डॉन डेविड राजपक्षे सिलोम में विदार अराची थे। डेविड के चार बेटों में सबसे पहले डॉन मैथ्यू राजनीति में आए। मैथ्यू के निधन के बाद उनके छोटे भाई डॉन अल्विन की राजनीति में एंट्री होती है। वर्तमान दौर में श्रीलंका को चला रहे राजपक्षे बंधु डॉन अल्विन के ही छोटे बेटे हैं। डॉन अल्विन के नौ बच्चे 6 बेटे और 4 बेटियां हुईं। चमल, जयंती, महिंद्रा, टुडोर, गोटबाया, बासिल, डुडले, प्रीथि और गंदागी। 

महिंदा 2005 से 2015 तक श्रीलंका के राष्ट्रपति रहे हैं।  1970 में पहली बार सांसद बने महिंदा लंबे समय तक अलग-अलग सरकारों में मंत्री भी रहे।2015 के चुनाव में हार के बाद कहा जाने लगा कि महिंदा का समय खत्म हो गया। लेकिन, एक साल बाद ही महिंदा ने अपनी अलग पार्टी बना ली। 2019 में महिंदा के छोटे भाई गोतबाया राष्ट्रपति बन गए। महज तीन साल पुरानी महिंदा की पार्टी फिर से सत्ता में आ गई। छोटे भाई गोतबाया ने बड़े भाई महिंदा को अपना प्रधानमंत्री बना दिया।  

भारत के खिलाफ जमकर उगला जहर, चीन से नजदीकियां

महिंद्रा राजपक्षे भारत विरोधी बयान को लेकर भी खूब सुर्खियां बटोरते रहे। श्रीलंका की बड़ी आबादी के बीच महिंद्रा राजपक्षे ने भारत विरोधी भावनाएं भड़काने की कोशिश में सफलता भी हासिल कर ली वहीं दूसरी ओर वो चीन के साथ गलबहियां करते दिखें। यहां तक की चीन के कर्ज जाल में फंसकर हंबनटोटा बंदरगाह तक 99 साल के लिए चीन के पास गिरवी रखना पड़ा। साल 2014 के बाद दोनों देशों की राजनीति में बड़ा परिवर्तन आता है। भारत में नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनते हैं वहीं ठीक एक साल बाद 2015 के मार्च में महिंद्रा राजपक्षे राष्ट्रपति का चुनाव हार जाते हैं। लेकिन राजपक्षे के भारत विरोध का आलम ये रहता है कि उन्होंने अपने हार के पीछे भारत की खुफिया एजेंसी रॉ को जिम्मेदार ठहरा देते हैं। महिंद्रा राजपक्षे ने बिना कोई सबूत पेश किए कहा था कि उनकी हार के पीछे रॉ और अमेरिका का हाथ है। 

श्रीलंका संकट 

श्रीलंका में मौजूदा संकट की शुरुआत 2019 में राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के तहत सरकार बनने के बाद शुरू हुई थी। श्रीलंका के खजाने में आमद की तुलना में अधिक बहिर्वाह देखा गया क्योंकि उन्होंने चुनावी वादे के तहत कर कटौती की घोषणा की। अब हालत यह है कि दूध, दाल, रोटी और ईंधन जैसी आवश्यक वस्तुओं के लिए नागरिक आसमान छूती कीमतों का भुगतान कर रहे हैं। कुछ दिन पहले तक एक लीटर नारियल तेल 350 रुपये में मिलता था। अब इसकी कीमत 900 रुपये प्रति लीटर हो गई है। द्वीप राष्ट्र अब कर्ज की बढ़ती स्थिति, एक खाली खजाना, अभूतपूर्व मुद्रास्फीति और हिंसक विरोध के साथ एक गंभीर स्थिति में है।

श्रीलंका की गलतियां

नवंबर 2019 में सरकार बनने के बाद राष्ट्रपति राजपक्षे ने करों को 15 फीसदी से घटाकर आठ फीसदी कर दिया। इससे देश को सालाना राजस्व में 60 हजार करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। एक और गलती उनके लिए प्रावधान किए बिना वादे करना था। श्रीलंका पर्यटन और आयात पर निर्भर देश है। जब कोविड -19 महामारी के दौरान पर्यटन ठप हो गया और सभी क्षेत्रों में आय में भारी गिरावट आई, तो बेरोजगारी बढ़ गई। खजाना खाली हो गया। श्रीलंका के लिए माल आयात करना मुश्किल हो गया। तीसरी बड़ी गलती अपने बढ़ते कर्ज पर कड़ी निगरानी रखी जा रही थी। श्रीलंका पर विदेशी कर्ज दो साल में 175 फीसदी तक बढ़ गया है। देश का कुल कर्ज अब 2.66 लाख करोड़ रुपये है। जानकारों का कहना है कि मौजूदा संकट के लिए अकेले राजपक्षे सरकार की दोषपूर्ण नीतियां ही जिम्मेदार हैं।