बरसाने के एक संत की कथा....!!

 क्लू टाइम्स, सुरेन्द्र कुमार गुप्ता। 9837117141

बरसाने के एक संत की कथा....!!


एक संत बरसाना में रहते थे और हर रोज सुबह उठकर यमुना जी में स्नान करके राधा जी के दर्शन करने जाया करते थे यह नियम हर रोज का था। जब तक राधा रानी के दर्शन नहीं कर लेते थे,तब तक जल भी ग्रहण नहीं करते थे। दर्शन करते करते तकरीबन उनकी ऊम्र अस्सी वर्ष की हो गई।आज सुबह उठकर रोज की तरह उठे और यमुना में स्नान किया और राधा रानी के दर्शन को गए। मन्दिर के पट खुले और राधा रानी के दर्शन करने लगे।


दर्शन करते करते संन्त के मन मे भाव आया की :- "मुझे राधा रानी के दर्शन करते करते आज अस्सी वर्ष हो गये लेकिन मैंने आज तक राधा रानी को कोई भी वस्त्र नहीं चड़ाये लोग राधा रानी के लिये, कोई नारियल लाता है, कोई चुनरिया लाता है, कोई चूड़ी लाता है, कोई बिन्दी लाता है, कोई साड़ी लाता है, कोई लहंगा चुनरिया लाता है। लेकिन मैंने तो आज तक कुछ भी नहीं चढ़ाया है।"

यह विचार संत जी के मन मे आया की "जब सभी मेरी राधा रानी लिए कुछ ना कुछ लाते है, तो मैं भी अपनी राधा रानी के लिए कुछ ना कुछ लेकर जरूर आऊँगा। लेकिन क्या लाऊं? जिससे मेरी राधा रानी खुश हो जाये ? 

तो संन्त जी यह सोच कर अपनी कुटिया मे आ गए। सारी रात सोचते सोचते सुबह हो गई उठे उठ कर स्नान किया और आज अपनी कुटिया मे ही राधा रानी के दर्शन पूजन किया।

दर्शन के बाद मार्केट मे जाकर सबसे सुंदर वाला लहंगा चुनरिया का कपड़ा लाये और अपनी कुटिया मे आकर के अपने ही हाथों से लहंगा-चुनरिया को सिला और सुंदर से सुंदर उस लहंगा-चुनरिया मे गोटा लगाये। जब पूरी तरह से लहंगा चुनरिया को तैयार कर लिया तो मन में सोचा कि "इस लहंगा चुनरिया को अपनी राधा रानी को पहनाऊगां तो बहुत ही सुंदर मेरी राधा रानी लगेंगी।"

यह सोच करके आज संन्त जी उस लहंगा-चुनरिया को लेकर राधा रानी के मंदिर को चले। मंदिर की सीढ़ियां चढ़ने लगे और अपने मन में सोच रहे हैं , "आज मेरे हाथों के बनाए हुए लहंगा चुनरिया राधा रानी को पहनाऊगां तो मेरी लाड़ली खूब सुंदर लगेंगी" यह सोच कर जा रहे हैं।

इतने मे एक बरसाना की लड़की(लाली)आई और बाबा से कहती है :- "बाबा आज बहुत ही खुश हो, क्या बात है ? बाबा बताओ ना !"

तो बाबा ने कहा कि :- "लाली आज मे बहुत खुश हूँ। आज मैं अपने हाथों से राधा रानी के लिए लहंगा-चुनरिया बनाया है। इस लहँगा चुनरिया को राधा रानी जी को पहनाऊंगा और मेरी राधा रानी बहुत सुंदर दिखेंगी।"

उस लाली ने कहा :- "बाबा मुझे भी दिखाओ ना आपने लहँगा चुनरिया कैसी बनाई है।"

लहँगा चुनरिया को देखकर वो लड़की बोली :- "अरे बाबा राधा रानी के पास तो बहुत सारी पोशाक है। तो ये मुझे दे दो ना।"

तो महात्मा बोले की :- "बेटी तुमको मैं दूसरी बाजार से दिलवा दूंगा। ये तो मै अपने हाथ से बनाकर राधा रानी के लिये लेकर जा रहा हूँ। तुमको और कोई दुसरा दिलवा दूंगा।"

लेकिन उस छोटी सी बालिका ने उस महात्मा का दुपट्टा पकड़ लिया "बाबा ये मुझे दे दो", पर संत भी जिद करने लगे की "दूसरी दिलवाऊंगा ये नहीं दूंगा।"

लेकिन वो बच्ची भी इतनी तेज थी की संत के हाथ से छुड़ा लहँगा-चुनरिया को छीन कर भाग गई।

अब तो बाबा को बहुत ही दुख लगा की "मैंने आज तक राधा रानी को कुछ नहीं चढ़ाया। लेकिन जब लेकर आया तो लाली लेकर भाग गई। मेरा तो जीवन ही खराब हैं। अब क्या करूँगा?"

यह सोच कर संन्त उसी सीढ़ियों में बैठे करके रोने लगे।

इतने मे कुछ संत वहाँ आये और पूछा :- "क्या बात है, बाबा ? आप क्यों रो रहे हैं।" तो बाबा ने उन संतों को पूरी बात बताया, संतों ने बाबा को समझाया और कहा कि :- "आप दुखी मत हो कल दूसरी लहँगा चुनरिया बना के राधा रानी को पहना देना। चलो राधा रानी के दर्शन कर लेते है।"

इस प्रकार संतो ने बाबा को समझाया और राधा रानी के दर्शन को लेकर चले गये। रोना तो बन्द हुआ लेकिन मन ख़राब था क्योंकि कामना पूरी नहीं हुई ना, तो अनमने मन से राधा रानी का दर्शन करने संत जा रहे थे और मन में ये ही सोच रहे है " की मुझे लगता है की किशोरी जी की इच्छा नहीं थी , शायद राधा रानी मेरे हाथो से बनी पोशाक पहनना ही नहीं चाहती थी ! ", ऐसा सोचकर बड़े दुःखी होकर जा रहे है।

मंदिर आकर राधा रानी के पट खुलने का इन्तजार करने लगे।

थोड़े ही देर बाद मन्दिर के पट खुले तो संन्तो ने कहा :- "बाबा देखो तो आज हमारी राधा रानी बहुत ही सुंदर लग रही है।"

संतों की बात सुनकर के जैसे ही बाबा ने अपना सिर उठा कर के देखा तो जो लहँगा चुनरिया बाबा ने अपने हाथों से बनाकर लाये थे, वही आज राधा रानी ने पहना था।

बाबा बहुत ही खुश हो गये और राधा रानी से कहा हे "राधा रानी,आपको इतना भी सब्र नहीं रहा आप मेरे हाथों से मंदिर की सीढ़ियों से ही लेकर भाग गईं ! ऐसा क्यों?"

सर्वेश्वरी श्री राधा रानी ने कहा की  "बाबा आपके भाव को देखकर मुझ से रहा नहीं गया और ये केवल पोशाक नही है, इस मैं आपका प्रेम  है तो मैं खुद ही आकर के आपसे लहँगा चुनरिया छीन कर भाग गई थी।"

इतना सुनकर के बाबा भाव विभोर हो गये और बाबा ने उसी समय किशोरी जी का धन्यवाद किया..!!