विश्व के सभी नृत्यकारों का हार्दिक अभिनन्दन है। यह दिवस 29-4-1982 से मनाना हुआ आरम्भ

क्लू टाइम्स, सुरेन्द्र कुमार गुप्ता। 9837117141

अंतर्राष्ट्रीय नृत्य दिवस



विश्व के सभी नृत्यकारों का हार्दिक अभिनन्दन है। यह दिवस 29-4-1982 से मनाना आरम्भ हुआ।

लेकिन अगर हम कहें तो नृत्य धरा पर तभी से विद्यमान हैं जब से सृष्टि ने अहसास की दुनिया बसाई।मानव मन बहती बयार में झूमा,लहराती प्रकृति मेें थिरका नदी की कल-कल को हाथों में समेटा,फूलों के सौन्दर्य से भाव-भंगिमाएं ली,पहाड़ी ऊंचाइयों से नैनों ने भावाभिव्यक्ति सीखी।आनन्द में  मोर की भांति आत्ममुग्ध हुआ। विधा का नाम तो विकसित मानव ने दिया।वरना कौनसा कोई भी हो तरीका बदल जाता है परंतु मनुष्य नाचता है।हर देश का नृत्य अलग-अलग नामों से प्रचलित है।ट्विस्ट, ब्रेक डान्स है तो भारत में तो जैसे धरा और मौसम के नाना रूप हैं वैसे ही नाना नाम के नृत्य हैं। कत्थक,कुचिपुड़ी,,मणिपुरी,आसामी,बीहू,भंगड़ा,गिद्दा,

गर्वा ,कालबेलिया, गढ़वाली ,लोकनृत्य आदि अनेक नामों से प्रसिद्ध है। 

भगवान शिव को नटराज यूँ ही नहीं कहते।उनका तांडव नृत्य वेद पुराण में चर्चित है।अनेक कला की विधाओं में नृत्य कला विलक्षणता को लिये है जिसमें सभी रसों का समावेश होता है। हम यह भी कह सकते हैं कि कोई भी नृत्य कलाकार जब सब भूल नृत्य भाव में डूबता है तब उसकी आत्मा अदृश्य शक्ति से अर्थात परम से तादात्म्य स्थापित कर लेती है।

हमारी संस्कृति में  मंदिरों के प्रांगण में विशेष अवसरों पर ही नृत्य होता था।मंदिरों से राजदरबार में राजमहल में पहुंचा अर्थात विशेष जनों के  लिये ही होने वाला जन के मध्य तीज त्योहारों में पहुंचा। खेतों में पहुंचा, पानी के कुंए पर पहुंच कर शादी ब्याह में घरों तक आया।एक काल यह भी रहा कि कोठे की दीवारों में कैद नृत्य कोठियों में आया।


देवी देवताओं के समक्ष या तथाकथित उच्च वर्ग तक सीमित आम मानव के गलियारे में पहुंचा और जो लोग नाचने गाने वालों को हेय दृष्टि से देखते थे उनके लिए सम्मान बढ़ गया और व्यवसाय भी बन गया जब से दूरदर्शन पर विभिन्न नृत्य प्रतियोगिता के कार्यक्रम होने लगे।

सच कहें तो हमें भी नृत्य बहुत पसःद है।आप अपने शौक को जिन्दा रखिये और जब चाहे जैसा चाहे थिरकिये।यह योग भी है।चलते चलते एक छोटी सी बात और साझा करते हैं नृत्य केवल स्वयं को नचाना ही नहीं है वरन हुनर हो तो आप अपने इशारे से किसी को भी नचा सकते हैं, उंगली पर भी नचा सकते हैं,तो कोई आपको भी नचा सकते है।

कहते हैं नाचने वाले के पांव नहीं रुकते तो जिसे नहीं आता उसे सुनना पड़ता है कि नाच न जाने आंगन टेढ़ा है।

पारंगत नहीं हैं तब भी जब मन मयूर नाचे तो पांव हिला ही डालियेगा और उन सभी महान नृत्यकारों को जिन्होंने कीर्तिमान स्थापित किया है उनका अभिनन्दन करते हुए होंसलाअफजाई कीजिए क्योंकि यह एक साधना है आराधना है,स्वयं में लीन होने की कला है।



अनिला सिंह आर्य