क्लू टाइम्स, सुरेन्द्र कुमार गुप्ता। 9837117141
जगजीवन राम को एक भारतीय समाज और राजनीति में दलित वर्ग के मसीहा के रूप में जाना जाता है। वह उन गिने-चुने नेताओं में से एक है जिन्हें राजनीति के साथ-साथ दलित समाज का भला करने के लिए भी याद किया जाता है। लाखों-करोड़ों दलितों की आवाज बनकर जगजीवन ने एक नई जिंदगी लोगों को प्रदान की।
भारत की आजादी के बाद राजनीति में बहुत ही कम नेता ऐसे रहे जिन्होंने न केवल मंत्री बल्कि कई मंत्रालयों की चुनौती को स्वीकार किया और उसे अंतिम अंजाम तक भी पहुंचाया। भारतीय राजनिति शिखर के पुरुष रहे जगजीवन राम को मंत्री के रूप में जो विभाग मिला उन्होंने अपनी ईमानदारी से उसका संचालन किया। जगजीवन राम जो ठान लेते थे उसे पूरा करके ही छोड़ते थे। वह हर एक चुनौतियों का डटकर सामना करते थे और अन्याय के खिलाफ कभी भी समझौता नहीं किया। दलितों के सम्मान के लिए जगजीवन राम हमेशा संघर्षरत रहे। बाबू जगजीवन राम एक दलित परिवार से आते थे। उनका जन्म 5 अप्रैल, 1908 को बिहार में भोजपुर के चंदवा गांव में हुआ था। जन्म से ही उन्हें बाबूजी के नाम से संबोधित किया जाने लगा। जगजीवन के पिता शोभा राम एक किसान थे और ब्रिटिश सेना में नौकरी करते थे। अपनी पढ़ाई के लिए वह कोलकाता चले गए और वहां से उन्होंने 1913 में ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की। इसी दौरान उनकी मुलाकात नेताजी सुभाष चंद्र बोस से भी हुई। महात्मा गांधी के नेतृत्व में जगजीवन राम ने आजादी की लड़ाई में भी जमकर भूमिका निभाई। इन कारणों से बापू के वह सबसे खास पात्र भी बने और राजनीति के केंद्र में आए। 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में जगजीवन राम ने अपनी सक्रिय भूमिका निभाई और इसी वजह से उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा।
जगजीवन राम को 1936 में बिहार विधानसभा परिषद के सदस्य के रूप में नामित किया गया। अगले साल वह बिहार विधानसभा के लिए चुने गए और संसदीय सचिव भी बनाया गया। 2 सितंबर 1946 को जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में एक कामचलाऊ सरकार का गठन किया गया और अनुसूचित जातियों के इकलौते नेता होने के नाते जगजीवन राम को एक नेता के रूप में शामिल किया गया। सबसे कम उम्र के कैबिनेट मंत्री बनने के साथ-साथ उन्होंने श्रम मंत्रालय की जिम्मेदारी बहुत ही सक्रिय रूप से संभाली। इसी समय से जगजीव राम का एक केंद्रीय मंत्री के रूप से सफर शुरू हो गया। 1952 से लेकर 1984 तक लगातार वह एक सांसद के रूप में कार्यरत रहे। नेहरू मंत्रिमंडल, इंदिरा गांधी, जनता सरकार के नेतृत्व में जगजीवन राम एक केंद्रिय मंत्री के रूप में काम करते रहे। अपने इतने लंबे कॅरियर के दौरान उन्हें श्रम, कृषि संचार रेलवे और रक्षा जैसे कई मंत्रालयों में काम करने का मौका मिला। जगजीवन राम को एक भारतीय समाज और राजनीति में दलित वर्ग के मसीहा के रूप में जाना जाता है। वह उन गिने-चुने नेताओं में से एक है जिन्हें राजनीति के साथ-साथ दलित समाज का भला करने के लिए भी याद किया जाता है। लाखों-करोड़ों दलितों की आवाज बनकर जगजीवन ने एक नई जिंदगी लोगों को प्रदान की। राजनीति का हिस्सा रहे जगजीव राम ने अपना सारा जीवन देश की सेवा में लगा दिया और जुलाई 1986 में 78 साल की उम्र में जगजीवन राम ने दुनिया को अलविदा कह दिया।
जगजीवन राम को 1936 में बिहार विधानसभा परिषद के सदस्य के रूप में नामित किया गया। अगले साल वह बिहार विधानसभा के लिए चुने गए और संसदीय सचिव भी बनाया गया। 2 सितंबर 1946 को जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में एक कामचलाऊ सरकार का गठन किया गया और अनुसूचित जातियों के इकलौते नेता होने के नाते जगजीवन राम को एक नेता के रूप में शामिल किया गया। सबसे कम उम्र के कैबिनेट मंत्री बनने के साथ-साथ उन्होंने श्रम मंत्रालय की जिम्मेदारी बहुत ही सक्रिय रूप से संभाली। इसी समय से जगजीव राम का एक केंद्रीय मंत्री के रूप से सफर शुरू हो गया। 1952 से लेकर 1984 तक लगातार वह एक सांसद के रूप में कार्यरत रहे। नेहरू मंत्रिमंडल, इंदिरा गांधी, जनता सरकार के नेतृत्व में जगजीवन राम एक केंद्रिय मंत्री के रूप में काम करते रहे। अपने इतने लंबे कॅरियर के दौरान उन्हें श्रम, कृषि संचार रेलवे और रक्षा जैसे कई मंत्रालयों में काम करने का मौका मिला। जगजीवन राम को एक भारतीय समाज और राजनीति में दलित वर्ग के मसीहा के रूप में जाना जाता है। वह उन गिने-चुने नेताओं में से एक है जिन्हें राजनीति के साथ-साथ दलित समाज का भला करने के लिए भी याद किया जाता है। लाखों-करोड़ों दलितों की आवाज बनकर जगजीवन ने एक नई जिंदगी लोगों को प्रदान की। राजनीति का हिस्सा रहे जगजीव राम ने अपना सारा जीवन देश की सेवा में लगा दिया और जुलाई 1986 में 78 साल की उम्र में जगजीवन राम ने दुनिया को अलविदा कह दिया।