बच्चा तो बच्चा है जायज नाजायज कैसा है (कविता)

 बच्चा तो बच्चा है जायज नाजायज कैसा है (कविता)

गर्भ तो गर्भ है चाहा अनचाहा कैसा है

औरत तो औरत है घरेलू बाजारू कैसा है

मानते हैं पत्नी बहन बेटी या कुछ ओर भी

इनसे बढ़कर है वह आदरणीय माँ भी

फिर माँ क्यों क्रूर हो जाती है?

औजारों से गर्भ पर वार कराती है

माँ क्यों पैदा नहीं होने देती अपनी सांसों को

भूल क्यों जाती है ममता अहसासों को

ख्यालों में मेरी तस्वीर बना कर तो देख

मुस्कराती आँखें हँसते होंठ बना कर तो देख

मेरे नन्हे हाथ उठते हरकत करते पाँव तो देख

ममता का आँचल भीगेगा दिल में सूरत बना कर तो देख

मुझे विश्वास है तेरी आँखों में मेरा इन्तजार है

दुनिया को देखने का मुझे भी इन्तजार है

सीने में छुपा लेगी यह यकीन है मुझे

हर बुरी बला से बचा लेगी तू मुझे

खुद भूखी रहकर दूध पिलायेगी मुझे

गीले में सोकर सूखे में सुलाएगी मुझे

तू माँ है ममता का सागर सुखा नहीं सकती

दुनिया में आने से पहले मार नहीं सकती

तेरी हर धड़कन में मैं हूँ माँ

तेरी हर साँस में सिर्फ मैं हूँ माँ

अपनी साँसों को थामना मुश्किल है

अपने अंश को काटना नामुमकिन है

गर्भ तो गर्भ है चाहा अनचाहा कैसा है

बच्चा तो बच्चा है जायज नाजायज कैसा है

                                 


                                                                    अनिला सिंह आर्या