ओबीसी आरक्षण नहीं, तो स्थानीय निकाय चुनाव नहीं, इलेक्शन रोकने के लिए उद्धव सरकार कौन सा विधेयक लेकर आई?

ओबीसी आरक्षण नहीं, तो स्थानीय निकाय चुनाव नहीं, इलेक्शन रोकने के लिए उद्धव सरकार कौन सा विधेयक लेकर आई?

मुंबई और 25 जिला परिषदों सहित 10 नगर निगमों का कार्यकाल इस महीने समाप्त हो जाएगा और इस साल चुनाव होने की उम्मीद थी। मार्च 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने स्थानीय चुनावों में अन्य पिछड़ा वर्ग के आरक्षण को रद्द कर दिया था।

महाराष्ट्र विधानसभा द्वारा पारित दो विधेयक कौन से हैं?

महा विकास अघाडी (एमवीए) सरकार ने मुंबई महानगरपालिका अधिनियम और महाराष्ट्र नगर परिषदों, नगर पंचायतों, औद्योगिक नगरीय योजना कानून के साथ-साथ महाराष्ट्र ग्राम पंचायत तथा जिला परिषद और पंचायत समिति अधिनियम में संशोधन पेश किए थे। इस प्रस्ताव को विधानसभा और विधान परिषद से पारित कर दिया गया तथा विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी ने भी इसका समर्थन किया। दो विधेयक राज्य सरकार को स्थानीय निकाय चुनावों के लिए परिसीमन और वार्ड गठन की शक्तियां लेने की अनुमति देते हैं। ये अधिकार पहले राज्य चुनाव आयोग (एसईसी) को दिए गए थे। इन विधेयकों के अनुसार राज्य चुनाव आयोग अब राज्य सरकार के परामर्श से स्थानीय और नगर निकाय चुनावों के लिए मतदान कार्यक्रम तय करेगा। इसके अलावा संशोधनों ने एसईसी द्वारा परिसीमन प्रक्रिया को रद्द करने और नागरिक और स्थानीय निकायों के वार्डों के निर्धारण का भी प्रस्ताव किया है। महाराष्ट्र एसईसी, जो 1994 में अस्तित्व में आया था, अतीत में इस गतिविधि को अंजाम दे रहा है।

इन विधेयकों को पारित करने की क्या आवश्यकता थी?

मुंबई और 25 जिला परिषदों सहित 10 नगर निगमों का कार्यकाल इस महीने समाप्त हो जाएगा और इस साल चुनाव होने की उम्मीद थी। मार्च 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने स्थानीय चुनावों में अन्य पिछड़ा वर्ग के आरक्षण को रद्द कर दिया था। तब से महाराष्ट्र सरकार इस कोटा को बहाल करने के लिए विभिन्न कानूनी रास्ते तलाशने की कोशिश कर रही है।

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

जनवरी में सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को राज्य में ओबीसी की स्थिति पर एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था। रिपोर्ट को महाराष्ट्र राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग द्वारा संकलित किया गया था, जिसने स्थानीय निकायों के चुनावों में उनके प्रतिनिधित्व पर सिफारिशें की थीं। महाराष्ट्र राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग ने फरवरी में सौंपी अपनी 35 पेज की रिपोर्ट में ओबीसी के लिए 27 फीसदी तक आरक्षण की सिफारिश की थी। इसके बाद रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंपी गई। महाराष्ट्र में स्थानीय निकाय चुनाव को लेकर ओबीसी वर्ग को समुचित प्रतिनिधित्व के लिए आरक्षण मामले में गठित आयोग की रिपोर्ट पर सुप्रीम कोर्ट ने असंतुष्टि जताते हुए रिपोर्ट में की गई सिफारिशों का आधार आंकड़ों पर आधारित और तर्क संगत बनाने को कहा। सुनवाई के दौरान जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस सीटी रविकुमार की बेंच ने कहा, "रिपोर्ट में ही उल्लेख है कि आयोग द्वारा अनुभवजन्य अध्ययन और शोध के अभाव में इसे तैयार किया जा रहा है। ऐसा करने में विफल रहने पर आयोग को अंतरिम रिपोर्ट दाखिल नहीं करनी चाहिए थी। नतीजतन, किसी भी प्राधिकरण को, राज्य चुनाव आयोग को छोड़कर, उक्त रिपोर्ट में की गई सिफारिशों पर कार्रवाई करने की अनुमति देना संभव नहीं है।

SC के आदेश ने महाराष्ट्र सरकार को लगा झटका

सुप्रीम कोर्ट के आदेश ने राज्य चुनाव आयोग को बिना किसी देरी के स्थानीय निकायों में चुनाव प्रक्रिया को अधिसूचित करने और अपने पहले के आदेश का पालन करने का निर्देश दिया, जिसमें निर्देश दिया गया था कि ओबीसी सीटों को सामान्य श्रेणी के रूप में माना जाए। महाराष्ट्र सरकार को लगता है कि ओबीसी आरक्षण के बिना चुनाव कराने से उन्हें राजनीतिक रूप से नुकसान हो सकता है, ऐसे समय में जब विभिन्न समितियां अपने राजनीतिक अधिकारों पर जोर दे रही हैं और आरक्षण मांग रही हैं। तब से सरकार ने दावा किया है कि वह ओबीसी कोटे के बिना ये चुनाव नहीं कराएगी।

दोनों विधेयकों को पारित करने से क्या होगा?

दो विधेयकों को पारित करने से राज्य सरकार को समय निकालने में मदद मिलेगी। सरकार उम्मीद कर रही है कि वार्ड सीमांकन की प्रक्रिया की समीक्षा करके उसे राज्य में ओबीसी की स्थिति पर अंतिम रिपोर्ट पर काम करने के लिए समय मिल सकता है। राज्य उम्मीद कर रहा है कि अगर एससी के सामने अनुभवजन्य डेटा के साथ एक उचित रिपोर्ट पेश की जाती है तो वह ओबीसी आरक्षण को बहाल करने में सक्षम होगा। हालाँकि, इस रिपोर्ट को पूरा करने के लिए इसे समय चाहिए और नए बिल इसे चुनावों को लम्बा खींचने की शक्ति देंगे।