जीवन की पुस्तक के पृष्ठ ......:.अनिला सिंह आर्य

जब वक्त मिले तो जीवन की पुस्तक के पृष्ठ पलटने को मन करता है।बात 1993-94की रही होगी। गाजियाबाद जिला परिसर में धरना था।सबसे आखीर में तत्कालीन सांसद महोदय जी ने कहा अनिला से बुलवाया जाए। इधर दिमाग में कोई विचार लेश मात्र भी नहीं था।अतः माइक के पास जाकर हमें भाषण देना नहीं आता कह कर वापस लौट आए।ठीक ऐसे ही  महिला मोर्चा का एक कार्यक्रम था ।याद नहीं  किसलिए था ।माइक हाथ में  और दिमाग शून्य परिणाम संयोजक जी ने हाथ खाली कर दिए।

ऐसे  सोचते थे कि ये जो भाषण दे रहे  या दे रही हैं वो ही श्रेष्ठ हैं। खैर ऐसे ही एक दिन मौका मिला जिसमें हम ही सर्वे सर्वा थे।आइये स्वागत कीजिए, आपका  हृदय की गहराइयों से आभार और धन्यवाद है बस यहीं तक बात रही। 

परन्तु एक दिन दूरदर्शन पर कांग्रेस की कद्दावर नेता श्रीमती सोनिया गाँधी जी को पढ़ते हुए भाषण देते देखा तो मन ने स्वयं से प्रश्न किया कि ये तो विश्व प्रसिद्ध राजनेता होते हुए पढ़कर भाषण दे रहीं हैं और तू(हम)तो एक कार्यकर्ता मात्र है तो हिम्मत कर और बोल ।बोलने के लिए  विचार चाहिए जो हैं। 

तो बस जी सोनिया जी ही हमारी प्रेरणा स्रोत रहीं हैं।

बोलना आरम्भ हुआ तो जैसा भी था वेंकैया नायडू जी,राजनाथ सिंह जी,कल्याण सिंह जी,लालकृष्ण आडवाणी जी की सभाओं में भी अवसर मिला अपनी बात रखने का। 

दूसरी प्रेरणा स्रोत रहीं जया जैतली जी।पहले हम चूड़ी चूंकि हाथ में ठहरती नहीं थी तो पहनते ही नहीं थे ।यही नहीं बिन्दी भी नहीं लगाते थे।कुछ लोगों की धारणाएं भिन्न-भिन्न थीं जो हम तक भी पहुंचीं। हमें लगता था कि हमारे खराब से चेहरे पर बिन्दी क्या जचेगी ।

खैर एक दिन जया जी को टी वी पर देखा बहुत बड़ी बिन्दी लगाए हुए।बस जी अचानक उस बड़ी बिन्दी ने हमसे कहा कि अरे आप भी लगाकर देखिए अच्छी लगेगी। बस जी वहीं से हमने आरम्भ कर दी बिन्दी लगानी।

और यही नहीं हाथ में प्लास्टिक के मैरून रंग के कड़े (सस्ते सुन्दर और टिकाऊ )भी पहनने आरम्भ कर दिए।

मन और आँखों  की बातें हैं सब।


अनिला सिंह आर्य।