अपने दिल की ख़्वाहिशें जिन्दा रखिए :अनिला सिंह आर्य

 अपने दिल की ख़्वाहिशें जिन्दा रखिए।एक दिन वह अवश्य आता है जब आप देखते हैं कि बरसों के ख्वाब जो आपने दिल में दबा रखे थे वो हकीकत बन रहे हैं।

चलिए इसी बात पर हम आपको अपने बचपन में  ले चलते हैं। 

बात तब की है जब हम पांचवीं कक्षा में थे ।हमारे विद्यालय में एक नृत्य प्रशिक्षक आए।हमने भी घर पर जिद्द कर के अनुमति प्राप्त की।पांच रुपया शुल्क के साथ घुंघरू भी खरीदे।सबसे पहले नृत्य मुद्राएं सीख लेती थी।विद्यालय का वार्षिक उत्सव हुआ और हमें उसमें भाग लेने  से न जाने क्यों वंचित कर दिया।मात्र एक या दो माह का नाटक मात्र रहा।

फिर बरेली में  छठी कक्षा में भी लोकनृत्य में भाग लेने का अवसर मिला।परंतु शिक्षिका के बदलते ही हम बाहर हो गये।

बचपन था परंतु आज भी वो बातें दिमाग में गहरे से जमी हैं या अंकित हैं। मन करता था कि ऐसा कुछ हो कि मंच पर गाने का अवसर मिले।परंतु कुछ ऐसा हुआ कि अंतर्मुखी आचरण होता गया। जैसे जैसे बड़ी होती गयी सब समझ आता  गया।लेकिन एक बार अ मेरे वतन के लोगों पंद्रह अगस्त को मौका मिला परंतु जब शिक्षा संगीत की ली ही नहीं थी तो कैसे होता। 

मंच का भय था जो गहरे में बैठ गया था।मन करता था कि अपनी आवाज़ सुनी जाए।

बहुत से शौक मन में पल रहे थे उसमें  चित्रकला, छायांकन आदि भी थे जिनको मरने नहीं दिया।और माना कि देर हुई परंतु कुछ-कुछ मौका मिल ही गया।पंद्रह वर्ष पूर्व नृत्य का अवसर मिला,और आगे फोन मिला ऐसा  जिससे छायांकन के साथ सुर भी कैद किए।

कुछ लेखन भी प्रकाशित हुआ। और आगे बढ़े तो फेसबुक ने भी अन॔त आकाश दिया ।

मन को मरने मत दीजिये। उसमें एक दीप अपने हुनर का सदैव जलाए रखें। बस बुझने न दें। आशा रूपी तेल खतम न होने दें। छोटी सी लौ जीवन से निराशा के अंधकार को कभी भी पनपने नहीं देगी।

बस तो मुस्कराइए और आशान्वित रहिए।

यादोँ के  पिटारे से फिर कुछ नया लेकर आते हैं। 

अनिला सिंह आर्य