पिता की मौत पर रो भी नहीं पाए विराट कोहली, दुख में डूबे होने के बावजूद बल्लेबाजी के लिए मैदान में उतरे थे

पिता की मौत पर रो भी नहीं पाए विराट कोहली, दुख में डूबे होने के बावजूद बल्लेबाजी के लिए मैदान में उतरे थे

विराट कोहली आज भले ही भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान नहीं है और लगातार उनकी बेटिंग पर सवाल उठ रहे हैं लेकिन इस खिलाड़ी के ने क्रिकेट को अपनी दुनिया समझा है और नामुमकिन को मुमकिन करके दिखाया है। भारत जो मैच इतिहास में कभी नहीं जीता था।

नयी दिल्ली। विराट कोहली आज भले ही भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान नहीं है और लगातार उनकी बेटिंग पर सवाल उठ रहे हैं लेकिन इस खिलाड़ी के ने क्रिकेट को अपनी दुनिया समझा है और नामुमकिन को मुमकिन करके दिखाया है। भारत जो मैच इतिहास में कभी नहीं जीता था उन मैच को कोहली ने अपनी कप्तानी के दम पर जीतवाया था। विराट कोहली एक सफल कप्तान रहे हैं। अब विराट कोहली मौहाली के मैदान में अपना 100वां टेस्ट खेलने जा रहे हैं। इसके लिए उन्होंने अपनी प्रेक्टिस शुरू कर दी है। विराट के बल्ले पर इस समय सबकी निगाहें है। पिछले काफी समय से विराट का बल्ला शांत है हर कोई उनके बल्ले से शतक देखना चाहता है।   विराट ने क्रिकेट के लिए एक बहुत बड़ा त्याग किया है जो शायद हर किसी के बस में नहीं हैं।

विराट कोहली का जन्म 5 नवंबर 1988 को दिल्ली में एक पंजाबी हिंदू परिवार में हुआ था। उनके पिता, प्रेम कोहली, एक आपराधिक वकील के रूप में काम करते थे और उनकी माँ सरोज कोहली, एक गृहिणी हैं। [उनका एक बड़ा भाई, विकास और एक बड़ी बहन भावना है। विराट सबके लाड़ले थे और हमेशा से ही क्रिकेटर बनना चाहते थे। कोहली का पालन-पोषण उत्तम नगर  में हुआ और उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा विशाल भारती पब्लिक स्कूल में शुरू की। 1998 में, वेस्ट दिल्ली क्रिकेट अकादमी बनाई गई और नौ वर्षीय कोहली इसके पहले सेवन का हिस्सा थे। कोहली ने राजकुमार शर्मा  के तहत अकादमी में प्रशिक्षण लिया और उसी समय वसुंधरा एन्क्लेव में सुमीत डोगरा अकादमी में मैच भी खेले। नौवीं कक्षा में, वह अपने क्रिकेट अभ्यास में मदद करने के लिए पश्चिम विहार में सेवियर कॉन्वेंट में स्थानांतरित हो गए। कोहली का परिवार 2015 तक मीरा बाग में रहा जब वे गुरुग्राम चले गए। एक महीने तक बिस्तर पर लेटे रहने के बाद स्ट्रोक के कारण 18 दिसंबर 2006 को कोहली के पिता की मृत्यु हो गई।

विराट कोहली के अतीत से जुड़ा हम आपको एक किस्सा बताते जा रहे है। कर्नाटक के खिलाफ 2006 में दिल्ली के रणजी ट्रॉफी मैच के तीसरे दिन जब पुनीत बिष्ट ड्रेसिंग रूम में पहुंचे तो कमरे में सन्नाटा पसरा था और एक कोने में 17 वर्ष का विराट कोहली बैठा था जिसकी आंखें रोने से लाल थी। बिष्ट यह देखकर सकते में आ गए लेकिन उन्हें अहसास हो गया कि इस लड़के के भीतर कोई तूफान उमड़ रहा है। कोहली के पिता प्रेम का कुछ घंटे पहले ही ब्रेन स्ट्रोक के कारण निधन हुआ था। कोहली और बिष्ट अविजित बल्लेबाज थे लेकिन कोहली पर मानों दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था। एक समय दिल्ली के विकेटकीपर रहे बिष्ट अब मेघालय के लिये खेलते हैं। उन्होंने उस घटना को याद करते हुए कहा ,‘‘आज तक मैं सोचता हूं कि उसके भीतर ऐसे समय में मैदान पर उतरने की हिम्मत कहां से आई। हम सब स्तब्ध थे और वह बल्लेबाजी के लिये तैयार हो रहा था।’’ उन्होंने कोहली के सौवें टेस्ट से पहले उस घटना को याद करते हुए कहा ,‘‘ उसके पिता का अंतिम संस्कार भी नहीं हुआ था और वह इसलिये आ गया कि वह नहीं चाहता था कि टीम को एक बल्लेबाज की कमी खले क्योंकि मैच में दिल्ली की हालत खराब थी।’’

 

सोलह साल पहले की वह घटना आज भी बिष्ट को याद है और यह भी कि कप्तान मिथुन मन्हास और तत्कालीन कोच चेतन चौहान ने विराट को घर लौटने की सलाह दी थी। उन्होंने कहा ,‘‘ उस समय चेतन सर हमारे कोच थे। चेतन सर और मिथुन भाई दोनों ने विराट को घर लौटने को कहा था क्योंकि उन्हें लगा कि इतनी कम उम्र में उसके लिये इस सदमे को झेलना आसान नहीं होगा।’ उन्होंने कहा ,‘‘ टीम में सभी की यही राय थी कि उसे अपने घर परिवार के पास लौट जाना चाहिये। लेकिन विराट कोहली अलग मिट्टी के बने हैं।’’ बिष्ट ने करीब एक दशक तक दिल्ली के लिये खेलने के बाद 96 प्रथम श्रेणी मैचों में 4378 रन बनाये हैं। इसके बावजूद युवा विराट कोहली के साथ 152 रन की वह साझेदारी उन्हें सबसे यादगार लगती है। बिष्ट ने उस मैच में 156 और कोहली ने 90 रन बनाये थे। उन्होंने कहा ,‘‘ विराट ने अपने दुख को भुलाकर जबर्दस्त दृढता दिखाई थी। उसने कुछ शानदार शॉट्स खेले और मैदान पर हमारी बहुत कम बातचीत हुई। वह आकर इतना ही कहता था कि लंबा खेलना है , आउट नहीं होना है। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि क्या कहूं। मेरा दिल कहता था कि उसके सिर पर हाथ रखकर उसे तसल्ली दूं लेकिन दिमाग कहता था कि नहीं , हमें टीम को जिताने पर फोकस करना है।’’ बिष्ट ने कहा ,‘‘ इतने साल बाद भी विराट उसी 17 साल के लड़के जैसा है। उसमें कोई बदलाव नहीं आया।’’ बंगाल के विकेटकीपर श्रीवत्स गोस्वामी ने भी भारत के लिये अंडर 19 क्रिकेट खेलने के दिनों को याद करते हुए कहा ,‘‘ हम बंगाल से थे और विराट दिल्ली से। उसकी ऊर्जा और आक्रामकता गजब की थी। उसके साथ रहते हुए कोई भी पल उबाऊ नहीं होता था।