
गाजियाबाद अब इसे लोकसभा चुनाव 2024 की तैयारियों का आगाज कहें या प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सोशल इंजीनियरिग, लेकिन यह सच है कि मंत्रिमंडल गठन में हर वर्ग को साधने के साथ ही कर्मठ कार्यकर्ताओं को पूरा सम्मान दिया गया है। इसी का असर है कि जिले की पांच विधानसभा सीटों से चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे विधायकों के हाथ बेशक निराशा लगी हो लेकिन पांच साल से भाजपा में काम करने का आखिरकार नरेन्द्र कश्यप को तोहफा मिल ही गया। शुक्रवार को उन्होंने लखनऊ में राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार के तौर पर जैसे ही शपथ ली वैसे ही गाजियाबाद के लोगों के चेहरे खिल उठे। कभी बसपा सुप्रीमो मायावती के नजदीकी रहे नरेन्द्र कश्यप ने 2017 में बसपा छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया था। 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में उन्होंने भाजपा के लिए पिछडे़ और अति पिछडे़ वर्ग के वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए जमीनी काम किया। विधानसभा चुनाव में भी उन्होंने ओबीसी मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर पूरे प्रदेश में चुनाव प्रचार किया। संजय नगर के रहने वाले अधिवक्ता नरेन्द्र कश्यप वर्ष 2016 में पुत्र वधू की दहेज मृत्यु के आरोप में जेल गए थे।
हीरालाल के चक्कर में छवि हुई थी खराब
बसपा नेता हीरालाल कश्यप और पन्नालाल कश्यप के चक्कर में उनकी राजनीतिक छवि खराब हुई थी। दरअसल बदायूं के रहने वाले हीरालाल कश्यप की बेटी हिमांशी की शादी वर्ष 2013 में नरेन्द्र कश्यप के पुत्र डा. सागर कश्यप से हुई थी। छह अप्रैल 2016 को हिमांशी की गोली लगने से मौत हो गई। इस प्रकरण में हीरालाल ने कविनगर थाने में नरेन्द्र कश्यप समेत छह लोगों के खिलाफ एफआइआर दर्ज कराई थी। नरेन्द्र कश्यप के नजदीकी पन्नालाल कश्यप भी हीरालाल के सुर में सुर मिलाने लगे। हीरालाल और नरेन्द्र कश्यप के बीच विवाद और आरोप-प्रत्यारोप बढ़ने पर बसपा सुप्रीमो मायावती ने दोनों को बसपा से निष्कासित कर दिया था। राष्ट्रीय महासचिव तक बनाया गया था
बसपा ने नरेन्द्र कश्यप को जहां पार्टी में राष्ट्रीय महासचिव का पद देने के साथ ही राज्यसभा सदस्य बनाया था, वहीं हीरालाल कश्यप को भी पार्टी ने राज्यमंत्री का दर्जा दिया था। कश्यप समाज के यह दोनों ही कद्दावर बसपा सुप्रीमो मायावती के खास सिपहसालारों में गिने जाते थे। यही कारण था कि पूरब और पश्चिम में धमक रखने वाले इन दोनों कद्दावरों ने अपने बच्चों की शादी तय करके इस राजनीतिक पहचान को 2013 में रिश्तेदारी में बदल दिया था। भाजपा में आने के बाद से ही नरेन्द्र कश्यप का कद बढ़ता गया। पहले बिहार चुनाव से पहले ओबीसी मोर्चा बिहार के प्रदेश अध्यक्ष बनाए गए थे और उत्तर प्रदेश चुनाव से ठीक पहले उन्हें ओबीसी मोर्चा का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था।