पिताजी पिताजी एक बात पूछूँ?

 पिताजी पिताजी एक बात पूछूँ? 

बेटा-पिता जी,पिता जी एक बात पूछूँ?

पिताजी-हाँ हाँ बेटा पूछो पूछो।

बेटा-पिता जी जल्दी ही होली त्यौहार आने वाला है।प् लीज मुझे बताओ कि हम हिन्दू लोग इस दिन एक दूजे को रंगों से क्यों रंगते हैं?

पिताजी-बेटा, यूँ तो हमारी हिन्दू संस्कृति में अनेक छोटे बड़े त्यौहार मनाए जाते हैं और हर त्यौहारों का अपना अपना महत्व होता है। ऐसे ही एक पर्व होली भी आता है जिसका हमारी हिन्दू संस्कृति में अपना एक वशिष्ठ स्थान है। इस पर्व को फाल्गुन माह की पूर्णिमा को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। प्रकृति एक नवीन रूप धारण करती हैं। सर्द मौसम के बाद बसंत आता है। मौसम एक नई अंगड़ाई लेता है। फसलें पक कर तैयार होती हैं। चारों दिशाओं की फ़िज़ाओं  में एक अलग ही सोंधी सोंधी सी महक होती है। मन उत्साहित और प्रफुल्लित होता है। फाल्गुन माह की पूर्णिमा को होलिका दहन कर लोग खुशियाँ मनाते हैं। अगले दिन रंगोत्सव पर लोग एक दूसरे के गालों पर गुलाल अबीर लगाते हैं। खुशियों से सराबोर हो एक दूजे को गले लगा कर मिठाइयाँ खिलाते हैं।यही इस पर्व की खूबसूरती है।

बेटा-पिताजी यह बताओ कि इस त्यौहार क्यों मनाए जाने का उद्देश्य क्या है ?

पिताजी-बेटा बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है यह त्यौहार। एक कथा प्रचलित है कि प्राचीन काल में एक अत्यंत अत्याचारी असुर राजा था हिरण्यकश्यप। वह स्वयं को भगवान मानता था। सारी प्रजा को आदेश था कि उसको भगवान मान कर पूजा जाए। किंतु उसका पुत्र अपने पिता को भगवान मानने से इंकार करता था। तब उसने क्रोधित हो अनेक बार अपने पुत्र प्रह्लाद को मरवाने का प्रयास किया किंतु वह सफल नहीं होता। हिरण्यकशिपु की बहन होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह आग में भस्म नहीं हो सकती। हिरण्यकशिपु ने आदेश दिया कि होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठे। आग में बैठने पर होलिका तो जल गई, पर प्रह्लाद बच गया। ईश्वर भक्त प्रह्लाद की याद में इस दिन होली जलाई जाती।

बेटा-पिताजी, पर मैं तो देखता हूँ जैसा आपने बताया वैसा तो कहीं कुछ नज़र नहीं आता। आज कल तो लोग इस त्यौहार के सुंदर उद्देश्य को भूल ही चुके हैं। लोग बाग तो अपने घरों में दुबके रहते हैं। बाहर निकलते ही नहीं। कोई रंग लगाना चाहे तो बुरा से मुँह बनाते हैं। मात्र औपचारिकता बन कर रह गया है यह पर्व। लोगों के दिलों में तो नफ़रत की आग धधक रही है मगर गालों पर वो गुलाल लगा रहे होते हैं। यह कैसी होली?

पिताजी-हाँ बेटा कह तो तू सही रहा है। आज सब कुछ दिखावटी हो कर रह गया है। लोगों के ह्रदय से प्यार तो खत्म ही हो गया है।

बेटा-पिताजी मैं तो कहता हूँ लोगों को चाहिए वह इस त्यौहार पर रंग लगाने से पूर्व अपने रिश्तों को संवारने हेतु अपने रूठे संबंधियों,मित्रों और पड़ोसियों से हुए मन मुटावों और मतभेदों को भुला कर एक दूजे से क्षमा माँग आपसी वैमनस्य को दूर कर होली पर्व मनाएँ। 

  अगर लोग दिल की मैल धोये बिना एक दूजे को रंग लगाते हैं तो निसंदेह उसका कोई लाभ नहीं। यह तो गुलाल और समय की बर्बादी होगी। अपने आप और दूसरे को धोखा देने के सिवा और कुछ भी नहीं। ऐसी होली किसी काम की नहीं।

पिताजी-चल चुप हो जा जब देखो बक बक करता रहता है।


अमित अरोरा, इम्पाला,मोदीनगर। 9758857300