वैवाहिक मामलों के शीघ्र निपटारे के लिए सर्वेक्षण में पाया गया कि कोविड-19 के दौरान ज्यादातर वैवाहिक मामले के मुख्य कारण ससुराल में पत्नी के मायके की दखलअंदाजी एवं आर्थिक बदहाली है। पति-पत्नी के बीच आपसी बातचीत की कमी दोनों का मोबाइल पर घंटों बिताना देर रात तक सोना है।

लखनऊ। वैवाहिक मामलों के शीघ्र निपटारे के लिए सर्वेक्षण में पाया गया कि कोविड-19 के दौरान ज्यादातर वैवाहिक मामले के मुख्य कारण ससुराल में पत्नी के मायके की दखलअंदाजी एवं आर्थिक बदहाली है। पति-पत्नी के बीच आपसी बातचीत की कमी, दोनों का मोबाइल पर घंटों बिताना, देर रात तक सोना और एक-दूसरे के लिए समय न देना भी इसके पीछे के अहम कारण हैं।
लखनऊ विश्वविद्यालय में आयोजित ई कार्यशाला में यह बात सामने आई।शनिवार को हुई ई-कार्यशाला में विधि-विशेषज्ञों ने तलाक पर बने हिंदू, मुस्लिम, क्रिश्चियन एवं पारसी कानूनों के बारे में जानकारी दी। विषय पर बोलते हुए काशी हिंदू विश्वविद्यालय के विधि विभाग के प्रोफेसर प्रदीप कुमार ने कहा कि हिंदू विधि में पति एवं पत्नी के बीच तलाक के कानूनों में विभिन्नताएं है, जबकि पारसी कानून दोनों को समान अधिकार देता है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अजय कुमार ने इस्लामिक कानूनों में तिहरे तलाक के बारे में विस्तार से जानकारी दी और मौजूदा समय में इस कानून के कई अनसुलझेे पहलुओं पर भी विस्तार से चर्चा की। संकायाध्यक्ष प्रो सी.पी.सिंह ने तलाक के कानूनों की महत्ता के बारे में बताया।कार्यशाला के आयोजक और प्रधान अंवेषक प्रो राकेश कुमार सिंह ने बताया कि स्थापना के दिन से ही केंद्र में विवाह, तलाक, भरण-पोषण, उत्तराधिकार, संरक्षता और दत्तक ग्रहण से संबंधित मामलों के संबंध में तमाम मामले सामने आ रहे हैं, जिनमें पक्षकारों द्वारा इस संबंध में कानूनों की जानकारी मांगी जा रही है।
उन्होंने कहाकि वैवाहिक मामलों का निपटारा कुटुंब कोर्ट के अतिरिक्त मध्यस्थता, काउंसलिंग, सुलह-समझौता का सहारा लिया जा सकता है। तलाक के कानूनों में महिलाओं को ज्यादा अधिकार दिए गये हैं लेकिन कानूनों एवं उनकी प्रक्रियाओं की जानकारी के अभाव के कारण उसका लाभ नहीं ले पा रही है। विशेषज्ञों ने तलाक के कानूनों के प्रति पति-पत्नी एवं समाज की जागरूकता के बारे में विशेष जिक्र करते हुये कहा कि तलाक के कानूनों से समाज के परिचित कराने की आवश्यकता है।