पूर्वाग्रहों से ग्रसित होकर कोई विचार धारा

कभी कभी मित्रों हम पूर्वाग्रहों से ग्रसित होकर कोई विचार धारा बना लेते हैं।उसमें हमारी सोच की सीमा संकुचित होती है (जरूरी भी नहीं है)।

सामाजिक स्वरूप पहले क्या था किसी से छुपा नहीं है। प्रकृति सबको समान स्वरूप में नहीं ढालती भिन्न भिन्न क्षमताओं के साथ जन्मने वाला मानव कहीं तो परिस्थितियों की चुनौतियों को स्विकार करता हुआ उनको पराजित करता हुआ अपने उद्देश्य को प्राप्त कर लेता है ।दूसरी ओर समान परिस्थितियों की चुनौतियों से पराजित हेय स्थान पर रह जाता है।

यहीं से समाज में ऊँच नीच का भाव जन्म ले लेता है ।इतिहास के पन्ने पलटिए समाज की तस्वीर सामने आएगी। तब जानेंगे आप  कि इंसान इंसान को जानवर से बदतर समझ कर कैसे व्यवहार करता है।

योग्यता एकलव्य में थी कर्ण में थी लेकिन उनको आगे किसने क्यों और किसलिए  नहीं आने दिया ।

अखबारों में आज भी जातिगत नस्लगत भेदभाव के उदाहरण मिल जाएंगे।क्या वो मनगढ़ंत हैं ।जी नहीं  ।हम अपनों को ही सब देना चाहते हैं सबको नहीं ।

संविधान ने यही व्यवस्था दी ।सबको शीर्ष छूने का सपना देखने को मिले और छूएँ भी ऐसे मार्ग भी बनाए।

जरा मित्रों एक सूचि बनाएँ उनकी जिन्होंने गलतियाँ ओपरेशन में निर्माण में या किसी भी निर्णय में दाखिलों में प्रशनपत्रों के घोटाले हों नौकरी के बंटवारे हों उनमें प्रमुख भूमिका निभाई हो।जरा ढूँढिए उन्हें भी जो देश की सुरक्षा के दस्तावेज बेच देते हैं ।

मित्रों हम अगर अपने देश से प्रेम करते हैं इसका सर्वांगीण विकास चाहते हैं तो सबको साथ लेकर चलना होगा ।हम तेज चल सकते हैं बहुत ही अच्छा है परंतु हमारे साथी पीछे छूट जाएँ यह भी तो अच्छा नहीं ।इस तरह की उन्नति तो अधूरी है  मित्रों ।

हमारे परिवार में भी अगर समान स्तर सबका नहीं होता हैं तो हम सम्मानित नहीं माने जाते ।परिवार के मुखिया का परम दायित्व होता है कि सभी सदस्यों को समान संसाधन उपलब्ध करा कर सम धरातल पर सबको खड़ा करे। 

अगर मित्रों यह बात परिवार पर सटीक बैठती है तो राष्ट्र के लिए असंवैधानिक कैसे ? 

ईश्वर का उनको परम आशिर्वाद प्राप्त जो बुद्धी से श्रेष्ठ हैं व्यापार में शीर्ष पर हैं ।

जो नहीं हैं उनके लिए भी उनके उज्ज्वल भविष्य और ,सम्मानित  जीवन की आशा और उम्मीद करती हूँ।


अनिला सिंह आर्य।