जो सफर अख्तियार करते हैं वो ही दरिया को पार करते हैं: अनिला सिंह आर्य

 इसकी भी यादें हैं। 


हम अकेले  ही नागपुर को रवाना हो  गये। प्रातःकाल  तीन साढ़े तीन नागपुर  पहॢँचना था और रेल को आगे जाना  था ।

एक तो रह ध्यान रखना  कि नागपुर  निकल न जाए दूसरा इतने अंधकार में  निर्दिष्ट  स्थान पर कैसे पहुंचेगे ।मन ने विचार  किया  कि विश्रामकक्ष में  दिन निकलने तक बैठेंगे  ।

एक महिला  सहयात्री  थीं  उनको  भी  नागपुर  ही जाना  था ।उन्होंने  बताया  कि  नागपुर  वो हमारे  साथ  उतर कर विश्रामकक्ष में  बैठेंगी ।सुबह उनके  बेटे उनको  लेने आ जाएंगे  ।

हमने भी सोचा  चलो एक से भले दो ।अनजानी  जगह जा रहे  हैं। 

अचानक  हमारी  आँख खुली तो  गाड़ी को प्लेट फार्म पर खड़े  पाया ।जानकारी  ली तो पता लला कि नागपुर  आ गया  तभी  हमारी  नजर बाहर पड़ी तो देखते  हैं कि  वह महिला  तो अपने बेटे  के साथ  जा रही  है  ।

बात  जाने  की  नहीं  थी ।वह हमें  उठा  तो सकती  थी ।खुदा न खास्ता  आँख  न खुलती  तब क्या  होता? 

हम भी फटाफट चादर समेट गाड़ी  से उतरे और यात्रियों के  पीछे  चल दिए  ।छत्तीसगढ़  गाड़ी  में  मेरठ से एक चेहरा  जाना पहचाना  था वो था मोहनलाल कपूरजी का ।कुछ व्यक्ति पहनावे से ही नेता  जैसे लग रहे थे ।

खैर हम भीड़ के  पीछे  चलते हुए  ऐसे  स्थान  पर पहुँच गए  जहाँ  स्थानीय  भाजपाई काउंटर पर बैठे  थे ।बस जी हमारी  तो सारी  चिंताएं छू हो गयीं। 

उन्होंने  बहुत ही  खूबसूरत  गुलाब देकर स्वागत किया  परिचय लिया ।उनके  द्वारा  वाहनों  की  व्यवस्था  थी तय स्थान पर पहुँच  गए  सब कुछ  बहुत  अच्छा  था ।

परंतु  एक आफत आ गयी ।दक्षिण से आने  वाली गाड़ियां  वहीं रुक गयीं क्योंकि भारी बारिश  से पुल टूट गया। अब यह तो फिक्र की बात  थी ।हम कैसे  जाएंगे। 

गाजियाबाद से जाने  वाले  सांसद डाक्टर रमेश चंद्र तोमरजी, राष्ट्रीय परिषद सदस्य स्वर्गीय श्री तेलूराम कम्बोज जी  से बात  करने  पर जानकारी  हुई कि वो तो हवाई यात्रा  से आए थे।

होश उड़ गये हमारे जी खाना वाना सब भूल गये  ।

परन्तु  तभी घोषणा हुई कि रेलवे विभाग के सम्बंधित कर्मचारियों को  वहीं बुला लिया।हमारे पुराने  टिकट निरस्त किए ।हम तो तुरंत बैग लेकर वाहन द्वारा  स्टेशन पहुंचे। 

अभी और भी औपचारिकताओं की आवश्यकता थी ।

गाड़ी, कोच,सीट आदि का पंजीकरण होना था।वहाँ  भीड़  बहुत  थी ।

कभी-कभी अजनबी  शहर में अजनबी लोग बहुत ही  सहायक  सिद्ध हो जाते  हैं। 

एक बंधु  ने पूछा  बहनजी आपको  कहाँ  जाना  है? 

हमने  उसे जैसे ही उत्तर प्रदेश  बताया  वो तो उछल पड़े। 

उन्होंने कहा  कि रामजन्म भूभि आन्दोलन में जब वो अयोध्या  गये थे तब आपके प्रदेश ने हमारी बहुत सेवा  करी थी।

उन्होंने झट से हमारा टिकट लिया और सारी औपचारिकता पूर्ण कराकर ले आए।और पानी के बहुत  सारे  पैकट यह कहकर बैग में  डाल दिए कि आपको  दीदी बहुत  दूर जाना  है। 

किन भले  मनुष्यों ने उनके साथ अच्छा व्यवहार  किया  था जिसका  फल हमें  मिला। 

विशेष  गाड़ी  चली थी ।बैठ गये ।खाने   का  कोई  बंदोबस्त नहीं  था ।

खरीद कर खाने  की  बात दिमाग  में  नहीं  थी ।कारण  पता नहीं  कब गाड़ी  चल दे ।

अन्य भी भाजपा के  बंधु बहनें  आ गयीं। 

हमारे  साथ  मध्य प्रदेश के  कोई विधायक  मंत्री  थे ।रात को  उनका  खाना  आया तो उन्हें  लगा कि  हमें  भी शामिल  करलें  ।हमने भी मना नहीं  किया  ।भोजन कर लिया  और उनको पानी दे दिया  पीने को ।

बात  बस यहीं  समाप्त  करें  

सफरनामा था ।परेशानी या चिंताएं  आती रहीं  और जाती रहीं  ।अंततोगत्वा  हम घर पहुँच  गये । महाराष्ट्र  की श्रेष्ठतम  व्यवस्था के  लिए साधुवाद । बस यही कहना  है कि 

जो सफर अख्तियार करते हैं  वो ही  दरिया  को पार करते हैं। 

सच तो यह है कि खुद रास्ते  मुसाफिर  का इंतज़ार  करते  हैं।

अनिला सिंह आर्य