नेता एक दूसरे को फूटी आंख न सुहाते हों, लेकिन इनकी पार्टियों के झंडों में गजब की एकता दिखाई दे रही है

 भले ही राजनीतिक दलों के नेता एक दूसरे को फूटी आंख न सुहाते हों, लेकिन इनकी पार्टियों के झंडों में गजब की एकता दिखाई दे रही है। शहर के चंद्रपुरी स्थित एक झंडा कारोबारी के गोदाम में सभी पार्टियों के झंडे गलबहियां करते दिखाई दे रहे हैं।

सियासी दलों के नेता एक दूसरे पर हमलावर, झंडे कर रहे गलबहियां

गाजियाबाद विधानसभा चुनाव का बिगुल बज गया है। जिले की पांचों विधानसभा सीटों में से कई राजनीतिक दलों ने अपने प्रत्याशी घोषित कर दिए हैं। सियासी दलों के नेता भले ही एक दूसरे पर जुबानी हमलावर हों, लेकिन सभी पार्टियों के झंडे गोदाम में एक दूसरे से गलबहियां करते नजर आ रहे हैं।

मौसम चुनावी है और पार्टी के नेता टिकट पाने के बाद एक दूसरे पर हमलावर होने लगे हैं। अभी शहर में किसी पार्टी का झंडा आमतौर पर नहीं दिख रहा। झंडा कारोबारी भी पार्टी की ओर से प्रत्याशियों के टिकट फाइनल होने का अभी इंतजार कर रहे हैं, लेकिन उन्होंने अपनी ओर से तमाम तैयारियां पूरी कर ली हैं। भाजपा हो या सपा-रालोद, बसपा हो या कांग्रेस सभी पार्टियों के झंडे डंडिया लगाकर पूरी तरह तैयार हैं। भले ही राजनीतिक दलों के नेता एक दूसरे को फूटी आंख न सुहाते हों, लेकिन इनकी पार्टियों के झंडों में गजब की एकता दिखाई दे रही है। शहर के चंद्रपुरी स्थित एक झंडा कारोबारी के गोदाम में सभी पार्टियों के झंडे गलबहियां करते दिखाई दे रहे हैं। झंडा कारोबारी ईशु गर्ग का कहना है कि सभी पार्टियां अपने-अपने प्रत्याशी घोषित करें तभी आर्डर मिलने शुरू हो जाएंगे। अभी तक झंडे के रेट तो घोषित प्रत्याशी ले रहे हैं, लेकिन आर्डर नहीं मिला है।

मथुरा, सूरत और अहमदाबाद से आता है कच्चा माल : चुनाव में इस्तेमाल होने वाले कपड़े की पूरी रील मथुरा के अलावा अहमदाबाद और सूरत से आती है। सफेद रील पर किस पार्टी के झंडे का रंग और चुनाव चिह्न छपना है, यह काम शुरू हो गया है, लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव की तरह इस बार यह व्यापक स्तर पर नहीं हो रहा है।

पाबंदी से बिक्री पर होगा असर : विधानसभा चुनाव में इस बार भाजपा के अलावा सपा, रालोद, कांग्रेस और बसपा के झंडे तैयार किए जा रहे हैं। भले ही कारोबारियों को अभी आर्डर न मिले हों, लेकिन उन्होंने झंडे में डंडियां लगाकर तैयार कर दिए हैं। कारोबारियों की मानें तो इस बार चुनाव आयोग द्वारा रैली और यात्राओं पर पाबंदी की वजह से झंडों की बिक्री बेहद कम होने का अनुमान है।