डेंगू लच्छन
सेहत का महकमा ठंड बढ़ने की खुशी में मच्छरों को हल्के में ले रहा था कि मौसम ने फिर करवट ले ली।कल से हवा गुम है और उमस बढ़ गई है। मुझे अचरज होता है मादा मच्छर की इच्छाशक्ति पर। ठंड में पेट पकड़े बैठी रहती है और मौसम का मिजाज जरा गर्म होते ही गर्भ छोड़ देती है।इसे गर्मी के कारण गर्भपात तो नहीं कह सकते हैं। सकुशल मच्छर पैदा होते हैं और जन्म के कुछ देर में ही कान पर आ धमकते हैं। अवसान के निकट पहुंच चुका डेंगू फिर उठ खड़ा होता नजर आ रहा है। गांवों में असर ज्यादा है। एक घर में चार चार लोग ज्वर से पीड़ित हैं। स्थानीय चिकित्सक खूब इलाज कर रहे हैं और खूब धन कमा रहे हैं। बड़े और निजी चिकित्सालयों में बिस्तर खाली नहीं हैं। बिस्तर खाली मिल जाए तो जेब खाली होते देर नहीं लगती। सरकारी व्यवस्थाओं में कोई कमी नहीं आई है। जैसे पहले वैसे अब। डेंगू के रोगी को पेट में पचना और प्लेटलेट्स घटना,दो समस्याएं मुख्य रूप से होती हैं।दवा और ग्लूकोज का ही सहारा रहता है। रोगियों की असल संख्या बताने को प्रशासन तैयार नहीं है। ऐसा करने पर रोकथाम के उपायों पर सवाल खड़े होंगे।सवाल ही पैदा न हो तो जवाब देने की जरूरत भी नहीं पड़ती।