लक्ष का शाब्दिक अर्थ है ध्यान लगाना, ध्येय बनाना, ध्यानपूर्वक निरीक्षण करना इत्यादि। इसका अर्थ ये है कि जब हम एकाग्रचित्त होकर कोई कार्य या साधना करते हैं तो उसका जो फल प्राप्त होता है उसे लक्ष्मी कहते हैं।
हमारे प्राचीन ॠषियों का प्रत्येक कार्य तप, ध्यान इत्यादि का उद्देश्य हमेशा शुभ एवं आध्यात्मिक समृद्धि के लिए होता था।तब लक्ष्मी का अर्थ जीवन के चार आयामों धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष के समन्वय से जीवन को दिव्यता के मार्ग पर ले जाना था।
हमारी सबसे प्राचीन पुस्तक ॠग्वेद में भी लक्ष्मी देवी का उल्लेख आता है परंतु वहां लक्ष्मी का अर्थ धन की देवी नहीं, शुभता एवं सौभाग्य की देवी है।
धन की उपयोगिता सीमित है।इस संसार में आप धन से सब कुछ नहीं प्राप्त कर सकते। न धन से आप माता-पिता खरीद सकते हैं, न दोस्त, न ज्ञान। ऐसा बहुत कुछ है जो धन से नहीं खरीदा जा सकता। परंतु सौभाग्य से आप जो चाहें वो प्राप्त कर सकते हैं।
अथर्ववेद में भी लक्ष्मी को शुभता, सौभाग्य, संपत्ति, समृद्धि, सफलता एवं सुख का समन्वय बताया गया है।
पुराणों में लक्ष्मी के आठ प्रकार बताए गए हैं ये हैं ....
आदिलक्ष्मी,
धान्यलक्ष्मी,
धैर्यलक्ष्मी,
गजलक्ष्मी,
संतानलक्ष्मी,
विजयलक्ष्मी,
विद्यालक्ष्मी,
एवं धनलक्ष्मी।
इससे स्पष्ट होता है कि लक्ष्मी का प्रभाव क्षेत्र केवल धन तक ही सीमित नहीं है। लक्ष्मी की उत्पत्ति समुद्र मंथन के समय मानी गई है। विभिन्न देवताओं की भिन्न-भिन्न शक्तियों का मूल स्त्रोत भी माता लक्ष्मी ही हैं।
पुराणों के अनुसार माता लक्ष्मी ने अग्निदेव को अन्न का वरदान दिया, वरूण देव को विशाल साम्राज्य का, सरस्वती को पोषण का, इन्द्र को बल का, बृहस्पति को पांडित्य का इत्यादि-इत्यादि। इससे सिद्ध होता है कि माता लक्ष्मी की कृपा जिसपर भी हो जाए उसे नाना प्रकार के ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। माता लक्ष्मी के हाथ में कमल है।शास्त्रों में कमल को ज्ञान, आत्म साक्षात्कार एवं मुक्ति का प्रतीक माना गया है।
आप सभी को शुभ दीपावली