आजादी से पहले ही भारतीय संघ में मिलने लगी थीं रियासतें

भारत (India) का आजादी (Independence) को 75 साल होने को हैं. इस मौके पर देश में कई आयोजन हो रहे हैं. ऐसे में यह समय उस वक्त को याद करने का भी जब देश आजाद हुआ था. 15 अगस्त 1947 को देश कुल 562 छोटी बड़ी रियासतों (Princely States) में  बंटा हुआ था ऐसे में देश एकीकृत भारत से बहुत ही दूर था. देश को एक करने के प्रयास आजादी से पहले शुरू हो गए थे. लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि उस साल 15 अगस्त से पहले ही रियासतों का भारत में विलय होना शुरू हो गया था.


एक भारत की कल्पना
आजादी के समय देश के कुछ हिस्से भारत पाकिस्तान के बंटवारे की त्रासदी झेल रहे थे तो देश के बहुत से हिस्से में लोगों को यह पता ही नहीं था कि वे आजाद भारत (Free India) का हिस्सा हैं कि नहीं. आजादी के समय हमारे नेताओं ने जिस आजाद भारत की कल्पना की थी वह अंग्रेजों से मुक्त भारत भर नहीं था, बल्कि कश्मीर से कन्याकुमारी तक एक भारत का था.


पहले से शुरू हो गई थी कवायद
आजादी के पहले ही रियासतों में भारत में शामिल करने की कवायद शुरू हो गई थी. इन रियासतों को पास विकल्प था कि वे या तो भारत या पाकिस्तान का हिस्सा बनें या खुद स्वतंत्र रहें. बहुत से नवाब और रजवाड़े आजाद रहना चाहते थे. त्रिपुरा की महारानी कंचनप्रभा देवी ने 13-14 अगस्त 1947 को भारत में शामिल होने के सहमति-पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए लेकिन भोपाल, हैदराबाद, जूनागढ़ सहित कुछ रियासतों ने भारत में शामिल होने से इनकार कर दिया था

रियासतों का असमंजस

25 जुलाई को लॉर्ड माउंटबेटन ने दिल्ली में पहली बार सभी रियासतों के प्रमुखों की बैठक बुलाई. इसमें 75 महाराजा और नवाबों के अलावा 74 राजा-महाराजाओं के प्रतिनिधि शामिल हुए थे. विलय से बचने के लिए बैठक में उन्होंने माउंटबेटन के सामने कई बहाने भी बनाए और अजीब तरह की आशंकाएं भी व्यक्त की. लेकिन इससे पहले 6 मई को ही सरदार वल्लभ भाई पटेल ने रियासतों, रजवाड़ों के विलय का कठिन काम शुरू कर दिया  था.


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रियासतों के विलय में सरदार वल्ल्भ भाई पटेल (Sardar Vallabh Bahi Patel) की प्रमुख भूमिका थी. (फाइल फोटो)

कुछ तुरंत मान गए तो कुछ बिलकुल नहीं
पटेल ने उस समय के वरिष्ठ नौकरशाह वीके मेनन को गृह विभाग का मुख्य सचिव बनाकर नवाबों, राजाओं से बातचीत शुरू की. उन्होंने रियासतों के वंशजों के सामने प्रिवी पर्सेज के माध्यम से उन्हें आर्थिक मदद देने का प्रस्ताव रखा. आजादी के दिन तक करीब 136 रियासतों ने भारत में सम्मिलित होने का निर्णय ले लिया था. लेकिन कुछ अन्य ने खुद को अलग रखा था. इनमें भोपाल और हैदराबाद के नवाब  प्रमुख थे.


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त्रिपुरा का विलय
आजादी से पहले भारत में शामिल होने वाली रियासतों में सबसे प्रमुख नाम त्रिपुरा का है.. 13 अगस्त 1947 को ही त्रिपुरा की महारानी कंचनप्रवा देवी ने त्रिपुरा के भारत में विलय का निर्णय लिया था. इसी दिन महारानी ने विलय के कागजात पर अपने दस्तखत किए थे जिसके साथ ही त्रिपुरा का भारत में विलय हो गया था.

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हैदराबाद (Hydrabad) के निजाम ने भारत की आजादी के तीन महीने पहले ही खुद को आजाद घोषित कर दिया था. (तस्वीर: Wikimedia Commons)

त्रावणकोर पर हुई थी सियासत
त्रावणकोर के दीवान ने घोषणा की थी कि उनके महाराजा एक अलग देश बनाएंगे. उन्हें अपने पास से एक बंदरगाह व यूरेनियम के भण्डार छिन जाने का डर था. इधर जिन्ना ने भी त्रावणकोर के राजा को पत्र भेजकर कहा कि पाकिस्तान स्वतंत्र त्रावणकोर से रिश्ते रखना चाहता है. लेकिन  उससे पहले ही एक प्रदर्शनकारी ने त्रावणकोर के प्रधानमंत्री के चेहरे पर छुरे से वार कर दिया. महाराजा घटना से डर गए और 14 अगस्त को विलय पर राजी हो गए.

हैदराबाद के निजाम की जिद

हैदराबाद के निजाम मीर उस्मान अली बहादुर ने 12 जून 1947 को ही आजाद देश बनाने का जोर शोर सेऐलान कर दिया था और अपनी निजी सेना तक बना ली थी. जनता निजाम के इस फैसले के खिलाफ थी और लगातार आंदोलन कर रही थी. तभी सरदार पटेल ने हैदराबाद पर सैन्य कार्रवाई का फैसला लिया और 13 सितंबर 1948 को ‘ऑपरेशन पोलो’ के नाम से कार्रवाई कर निजाम को हथियार डालने पर मजबूर कर दिया. इस तरह निजाम को झुकना पड़ा और भारत में विलय को राजी हो गए.