पारसी समुदाय के लोगों के लिए नवरोज यानी पारसी नववर्ष का बेहद खास होता है। नवरोज एक फारसी शब्द है, जो "नव" यानी नया और "रोज" यानी दिन से मिलकर बना है। इस तरह से नवरोज का मतलब हुआ नया दिन। पारसी लोगों द्वारा नवरोज बहुत उत्साह और उमंग के साथ मनाया जाता है। इस दिन को जमशेदी नवरोज, नवरोज, पतेती और खोरदाद साल के नाम से भी जाना जाता है। पारसी समुदाय के लोगों को इस दिन का सालभर इंतजार रहता है। इस दिन परिवार के सभी लोग एक साथ मिलकर इसे उत्स्व के तौर पर मनाते हैं।
माना जाता है कि तीन हज़ार साल पहले जिस दिन ईरान में शाह जमशेद ने सिंहासन ग्रहण किया, उस दिन को नया दिन या नवरोज़ कहा गया। आगे चलकर जरथुस्त्र वंशियों द्वारा यह दिन नए वर्ष के पहला दिन के रूप में मनाया जाने लगा। यह त्यौहार भारत के अलावा ईरान, पाकिस्तान, ताजिकिस्तान, इराक, लेबनान आदि देशों में बहुत हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। भारत में यह दिन पारसी कैलेंडर के अनुसार नववर्ष के रूप में मनाया जाता है। पारसी लोगों का मानना है कि इस दिन पूरी कायनात बनाई गई थी। पारसी लोग नववर्ष के दिन विशेष पकवान बनाते हैं। इनमें मीठा रवा, सिवई, पुलाव, मछली तथा अन्य व्यंजन बनाए जाते हैं। इस दिन घर आने वाले मेहमानों का स्वागत गुलाब जल छिड़कर किया जाता था।
पारसी समुदाय के लोगों के लिए नवरोज का त्यौहार बहुत खास होता है। इस दिन को पारसी लोग नवरोज फारस के राजा जमशेद की याद में मनाते हैं जिन्होंने पारसी कैलेंडर की स्थापना की थी। इस दिन परंपरा के अनुसार, पारसी लोग जरथुस्त्र की तस्वीर, मोमबत्ती, कांच, सुगंधित अगरबत्ती, शक्कर, सिक्के जैसी पवित्र चीजें एक मेज पर रखते हैं। पारसी मान्यताों के अनुसार ऐसा करने से परिवार में सुख-समृद्धि बढ़ती है। इस दिन पारसी समुदाय के लोग अपने परिवार के साथ प्रार्थना स्थलों पर जाते हैं। इस दिन लोग पुजारी को धन्यवाद देने वाली प्रार्थना विशेष रूप से करते हैं, जिसे जश्न कहा जाता है। इस दिन लोग पवित्र अग्नि में चन्दन की लकड़ी भी समर्पित करते हैं और एक-दूसरे को नवरोज की शुभकामनाएं देते हैं।