कोरोनाकाल में बड़ी आफत, 'टाइम बम' बन रहे हैं फेंके गए मास्क, कैसे

coronavirus mask

कोरोना काल में मास्क ने हमारी रक्षा की, लेकिन इस्तेमाल कर फेंके गए मास्क 'टाइम बम' बनते जा रहे हैं। पर्यावरण वैज्ञानिकों की मानें तो दुनिया में हर मिनट लोग 28 लाख से अधिक मास्क इस्तेमाल कर खुले में फेंक देते हैं। वैज्ञानिकों ने चेताया है कि मास्क की रिसाइकलिंग न होने से दुनिया में लाखों टन प्लास्टिक कचरा जमा हो रहा है, जिससे कई गंभीर नुकसान हो सकते हैं। जर्नल फ्रंटियर्स ऑफ इनवायरनमेंटल साइंस एंड इजीनियरिंग में प्रकाशित नई स्टडी में इस बारे में चिंता जताई है। वैज्ञानिकों ने कहा कि इस्तेमाल के बाद मास्क को सही तरीके से नष्ट(डिस्पोज) नहीं करने से यह प्लास्टिक खतरा बनता जा रहा है। स्टडी के अनुसार, हर महीने पूरी दुनिया में लोग 29 हजार करोड़ मास्क इस्तेमाल करते हैं। यानी औसतन हर मिनट लोग करीब 28 लाख से अधिक मास्क इस्तेमाल करते हैं। वैज्ञानिकों ने कहा कि मास्क में इस्तेमाल की गई पॉलीप्रोपीलीन नामक प्लास्टिक किसी अन्य प्लास्टिक बैग, बोतल के मुकाबले रिसाइकिल होने में ज्यादा वक्त लेता है।

डेनमार्क विश्वविद्यालय में पर्यावरण विज्ञानी और शोध दल के प्रमुख डॉक्टर इलविस जेन्बो के अनुसार, नष्ट किए जा सकने वाले मास्क इस्तेमाल के बाद भी विभिन्न छोटे-छोटे प्लास्टिक के रूप में रह जाते हैं, जिन्हें नष्ट होने में सालों का समय लग जाता है। उन्होंने कहा कि प्लास्टिक बैग या बोतल का 25 फीसदी हिस्सा रिसाइकिल किया जा सकता है लेकिन अब तक मास्क के बारे में ऐसी कोई योजना नहीं है। ऐसे में यह नैनो प्लास्टिक हमारे समुद्रों के लिए बड़ा खतरा बन रहे हैं। डॉक्टर जेन्बो ने कहा कि प्लास्टिक से बने मास्क या एक बार इस्तेमाल करने वाले मास्क की जगह सरकारों को कपड़े से बने तीन लेयर वाले मास्क को बढ़ावा देना चाहिए। कपड़े से बने मास्क को दोबारा इस्तेमाल भी किया जा सकता है। साथ ही मास्क नष्ट करने के संबंध में कोई दिशानिर्देश बनाने चाहिए।

पॉलीप्रोपीलीन प्लास्टिक का इस्तेमाल
आमतौर पर बिकने वाला एन-95 मास्क पॉलीप्रोपीलीन नामक प्लास्टिक से तैयार किया जाता है। प्रिंसटन विश्वविद्यालय के एक अध्ययन के मुताबिक, यदि एक फीसदी मास्क भी समुद्र में आ गए तो हर महीने 40 हजार टन कचरा समुद्र में बढ़ने की आशंका है। वैज्ञानिकों का कहना है कि हर साल 80 लाख टन प्लास्टिक समुद्र में जाता है, यही हालात रहे तो वर्ष 2050 तक समुद्र में मछलियों से ज्यादा प्लास्टिक कचरा होगा।

विश्व बैंक ने भी जताई चिंता
विश्व बैंक ने भी एक अध्ययन में कहा है कि भारत जैसे देश को, अपने उच्च आर्थिक विकास और तीव्र शहरीकरण के साथ, शहरी कचरे के कुप्रबंधन से संबंधित समस्याओं के तत्काल समाधान की आवश्यकता है। ठोस कचरे (सॉलिड वेस्ट) पर बढ़ती चिंताओं के पीछे प्रमुख वजह यह है कि इसका सही तरीके से निपटान करने की बजाय ज्यादातर हिस्सा डंप किया जाता है। इसके अलावा मास्क का निपटान गैर-बायोडिग्रेडेबल कचरे में जोड़ा जा रहा है क्योंकि सर्जिकल या गैर-सर्जिकल मास्क बनाने के लिए कई प्रकार की सामग्रियों का उपयोग किया जाता है।

भारत में हर साल निकलता है 4 हजार टन प्लास्टिक कचरा
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के 60 बड़े शहरों में किए गए एक सर्वे के अनुसार, इन शहरों से रोजाना 4,059 टन प्लास्टिक कचरा निकलता है। इस आधार पर अनुमान लगाया गया था कि देशभर से रोजाना 25,940 टन प्लास्टिक कचरा निकलता है। इसमें से सिर्फ 60 फीसदी यानी 15,384 टन प्लास्टिक कचरा ही एकत्रित या रिसाइकल किया जाता है। बाकी नदी-नालों के जरिए समुद्र में चला जाता है या फिर उसे जानवर खा लेते हैं। इसके अलावा हर साल 1.5 लाख टन से ज्यादा प्लास्टिक कचरा विदेशों से भारत आता है। नेचर पत्रिका की 2017 की रिपोर्ट के मुताबिक, सालाना 1.10 लाख टन प्लास्टिक कचरा गंगा से बहकर बंगाल की खाड़ी में मिल जाता है।