![Saphala Ekdashi 2021:](https://images1.livehindustan.com/uploadimage/library/2021/01/09/16_9/16_9_1/saphala_ekdashi_2021__1610150273.jpg)
सफला एकादशी आज यानी 09 जनवरी, 2021 को है। यह साल की पहली एकादशी है। हिंदू पंचांग के अनुसार, पौष मास कृष्ण पक्ष की एकादशी को सफला एकादशी कहते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, सफला एकादशी के दिन भगवान विष्णु की विधि-विधान से पूजा करने वालों पर भगवान विष्णु की विशेष कृपा बरसती है और साथ ही सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है। हालांकि एकादशी के व्रत के कुछ नियम शास्त्रों में बताए गए हैं, जिनका जरूर पालन करना चाहिए। जानिए एकादशी के दिन क्या करें और क्या न करें-
1. शास्त्रों में सभी 24 एकादशियों में चावल खाने को वर्जित माना गया है। मान्यता है कि एकादशी के दिन चावल खाने से इंसान रेंगने वाले जीव योनि में जन्म लेता है। इस दिन भूलकर भी चावल का सेवन नहीं करना चाहिए।
2. एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करने के साथ ही खान-पान, व्यवहार और सात्विकता का पालन करना चाहिए।
3. कहा जाता है कि एकादशी के पति-पत्नी को ब्रह्नाचार्य का पालन करना चाहिए।
4. मान्यता है कि एकादशी का लाभ पाने के लिए व्यक्ति को इस दिन कठोर शब्दों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। इसके साथ ही लड़ाई-झगड़े से भी बचना चाहिए।
5. एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठना शुभ माना जाता है और शाम के समय नहीं सोना चाहिए।
सफला एकादशी के दिन करें ये काम-
1. एकादशी के दिन दान करना उत्तम माना जाता है।
2. एकादशी के दिन संभव हो तो गंगा स्नान करना चाहिए।
3. विवाह संबंधी बाधाओं को दूर करने के लिए एकादशी के दिन केसर, केला या हल्दी का दान करना चाहिए।
4. एकादशी का उपवास रखने से धन, मान-सम्मान और संतान सुख के साथ मनोवांछित फल की प्राप्ति होने की मान्यता है।
5. कहा जाता है कि एकादशी का व्रत रखने से पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
सफला एकादशी 2021 शुभ मुहूर्त-
एकादशी तिथि प्रारम्भ - जनवरी 08, 2021 को रात 9:40 बजे
एकादशी तिथि समाप्त - जनवरी 09, 2021 को शाम 7:17 बजे तक।
सफला एकादशी व्रत कथा-
व्रत की कथा अनुसार चम्पावती नगरी में महिष्मत नाम के राजा के पांच पुत्र थे। बड़ा पुत्र चरित्रहीन था और देवताओं की निन्दा करता था। मांसभक्षण और अन्य बुराइयों ने भी उसमें प्रवेश कर लिया था, जिससे राजा और उसके भाइयों ने उसका नाम लुम्भक रख राज्य से बाहर निकाल दिया। फिर उसने अपने ही नगर को लूट लिया। एक दिन उसे चोरी करते सिपाहियों ने पकड़ा, पर राजा का पुत्र जानकर छोड़ दिया। फिर वह वन में एक पीपल के नीचे रहने लगा। पौष की कृष्ण पक्ष की दशमी के दिन वह सर्दी के कारण प्राणहीन सा हो गया। अगले दिन उसे चेतना प्राप्त हुई। तब वह वन से फल लेकर लौटा और उसने पीपल के पेड़ की जड़ में सभी फलों को रखते हुए कहा, ‘इन फलों से लक्ष्मीपति भगवान विष्णु प्रसन्न हों। तब उसे सफला एकादशी के प्रभाव से राज्य और पुत्र का वरदान मिला। इससे लुम्भक का मन अच्छे की ओर प्रवृत्त हुआ और तब उसके पिता ने उसे राज्य प्रदान किया। उसे मनोज्ञ नामक पुत्र हुआ, जिसे बाद में राज्यसत्ता सौंप कर लुम्भक खुद विष्णु भजन में लग कर मोक्ष प्राप्त करने में सफल रहा।