मसौदा कानून विधायिका से 60 दिन पहले सरकारी वेबसाइटों पर प्रकाशित हो, सुप्रीम कोर्ट में याचिका
supreme court

उच्चतम न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर कर मसौदा कानूनों को संसद और राज्य विधानसभाओं में पेश किए जाने से कम से कम 60 दिन पहले सरकारी वेबसाइटों पर उन्हें प्रमुखता से प्रकाशित करने तथा लोगों के बीच उपलब्ध कराने के लिए केंद्र और राज्यों को निर्देश देने का अनुरोध किया गया है।

यह जनहित याचिका (पीआईएल) भाजपा नेता एवं अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने दायर की है। उन्होंने इसके जरिए केंद्र को यह सुनिश्चित करने का निर्देश देने का भी अनुरोध किया है कि सभी मसौदा कानूनों और जिस रूप में उन्हें पारित किया गया हो, उसे सभी क्षेत्रीय भाषाओं में लोगों के बीच उपलब्ध कराया जाए।

अधिवक्ता अश्विनी कुमार दूबे के मार्फत दायर की गई जनहित याचिका में कहा गया है,‘आज की लोकतांत्रिक प्रक्रिया में, अत्याधुनिक मीडिया और प्रौद्योगिकी के दौर में, सरकारों, केंद्र और राज्य दोनों, के लिए यह उचित नहीं है कि वे विधानमंडल में बमुश्किल कोई चर्चा कराये बगैर अचानक ही रातों-रात कोई कानून पारित कर दें और उन पर कोई व्यापक विचार-विमर्श नहीं कराया जाए।’

याचिका में कहा गया है, ‘कृषि सुधारों (तीन नए कृषि कानूनों) के खिलाफ प्रदर्शन से यह जाहिर होता है कि एक कानून का संदेश कैसे कानूनी शब्दजाल में गुम हो गया और विधायिका के पटल पर इस तरह के विधेयकों को रखे जाने से पहले चर्चा नहीं करने के क्या अंजाम हो सकते हैं।’ याचिका में कहा गया है कि राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े विषयों को छोड़ कर अन्य किसी भी मसौदा कानून को संसद या राज्य विधानमंडल में पेश किए जाने से कम से कम 60 दिन पहले अवश्य ही सरकारी वेबसाइटों पर प्रकाशित किया जाना चाहिए।

प्रस्तावित कानूनों का क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवाद कराने की मांग
इसमें कहा गया है कि जहां तक केंद्रीय कानूनों की बात है, प्रस्तावित कानूनों का क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवाद कराया जाना चाहिए और संसद में उन्हें पेश करने से कम से कम 60 दिन पहले उन्हें ऑनलाइन प्रकाशित किया जाना चाहिए, ताकि देश के नागरिक उन्हें पूरी तरह से समझ सकें।

नए कृषि कानूनों का जिक्र किया
नए कृषि कानूनों का जिक्र करते हुए याचिका में कहा गया है कि किसानों को नेताओं द्वारा गुमराह किया जा रहा है क्योंकि उन्हें संसद में पेश करने से पहले व्यापक परामर्श एवं टिप्पणी के लिए मसौदा कानूनों को प्रकाशित नहीं किया गया था। याचिका में कहा गया है कि इसके चलते काफी गलत सूचना फैली और किसान प्रदर्शन करने लगे तथा निहित स्वार्थ वाले लोग किसानों की आड़ में इस स्थिति का इस्तेमाल अपने फायदे के लिए कर रहे हैं। याचिका में कहा गया है,‘लोगों को बड़ा नुकसान हुआ है क्योंकि मौजूदा कानून निर्माण प्रक्रिया न सिर्फ अलोकतांत्रिक है, बल्कि असंवैधानिक भी है।’