सिंदूर खेला के साथ मां दुर्गा को विदाई, बनारस समेत यूपी के कई शहरों में दिखी धूम

यूपी में भी शारदीय नवरात्र के बाद मां दुर्गा को विदाई दी जा रही है। मिनी बंगाल कहे जाने वाले वाराणसी में इसकी धूम मची है। भले ही इस बार कोरोना के कारण पंडाल और मूर्तियां छोटी रखी गई थीं लेकिन मां दुर्गा की विदाई पारंपरिक रूप से हो रही है। खासकर बंगाली संस्थाओं में सिंदूर खेला का आयोजन सुबह से ही हो रहा है। कानपुर में भी बंगाली मुहल्लों में सिंदूर खेला के साथ मां दुर्गा को विदाई जा रही है। मेरठ में मां को विदाई तो दी जा रही है लेकिन सिंदूर खेला नहीं हो रहा है।


नवरात्रि में मां दुर्गा के आखिरी दिन यानी विजयादशमी के दिन पंडालों में महिलाएं मां दुर्गा को सिंदूर अर्पित करती हैं। इसके बाद सभी महिलाएं पान और मिठाई का भोग लगा कर एक दूसरे को सिंदूर लगाती हैं। यह करीब चार सौ साल पुरानी परंपरा है। इस शुभ दिन और परंपरा को सिंदूर खेला कहा जाता है।


वाराणसी में बंग समाज से जुड़े पूजा संस्‍थाओं में सोमवार को सिंदूर खेला का आयोजन किया गया। सोनारपुरा, दशाश्‍वमेध, शिवाला, पांडेय हवेली, बंगाली टोला, भेलूपुरा, केदारघाट आदि में सिंदूर खेला में महिलाएं शामिल हुईं। शादीशुदा महिलाएं लाल रंग की साड़ी पहन कर माथे में सिंदूर भर कर पंडाल पहुंचीं और दुर्गा मां को उलू ध्‍वनी के साथ विदा कर करने की परंपरा का निर्वाह किया।


मान्‍यता है कि मां दुर्गा की मांग भर कर उन्‍हें मायके से ससुराल विदा किया जाता है। कहते हैं कि मां दुर्गा पूरे साल में एक बार अपने मायके आती हैं और पांच दिन मायके में रुकने के बाद दुर्गा पूजा होती है। वर्षों पहले वाराणसी में दुर्गा पूजा की शुरुआत करने वाले बंगाली समाज के पूजा पंडालों में सिंदूर खेला की धूम है। मां के मायके से ससुराल जाने की मान्यता को मानते हुए अपने पति की लम्बी आयु के लिए बंगाली समाज की महिलाओं ने मां को समर्पित होने वाले सिंदूर से अपनी मांग भरकर एक दूसरे के गालों को सिंदूर से भर दिया। मां दुर्गा के सिंदूरदान के बाद महिलाओं ने सिन्दूर से जमकर होली खेली।


मान्यता यह भी है कि मां दुर्गा नवरात्र में अपने बच्चों के साथ माईके आती हैं। ये जब अपने माईके से विदा होती है तो सभी सुहागन औरते मां को सिंदूर लगाने के बाद उस सिन्दूर को आपस में लगाती है। ऐसा करने से पति की उम्र लम्बी होती है। इस दौरान माता को मिठाई भी अपने हाथों से सुहागन औरतें खिलाती है और आपस में भी खाती हैं।


मां दुर्गा की जब विदाई होती है तो उनका दर्शन नीचे रखे आईने में किया जाता है। विदाई का माहौल गमगीन न, हो इसलिए सैकड़ों वर्षों से परंपरा चली आ रही है। बनारस में भेलूपुर स्थित जिम स्पोर्टिंग क्लब और सोनारपुरा स्थित स्टूडेंट क्लब में सुबह से मां को विदाई के लिए महिलाओं का हुजूम उमड़ा हुआ है। 


कानपुर में गाजे-बाजे के साथ मां को विदाई
नवरात्र के समापन पर कानपुर में सोमवार को बंगाली समाज ने परंपरागत तरीके से मां दुर्गा को विदाई दी। समाज की महिलाओं ने माता का पूजन अर्चन कर सिंदूर खेला और गाजे-बाजे के साथ नौ देवियों को विदाई दी। इस दौरान बड़ी संख्या में भक्त और श्रद्धालु शामिल हुए। मॉडल टाउन स्थित दुर्गा पंडाल से विसर्जन यात्रा निकाली गई। अबीर गुलाल उड़ाते श्रद्धालुओं ने मां दुर्गा को विदा किया।


मेरठ में मां को विदाई लेकिन सिंदूर खेला नहीं
मेरठ में सदर दुर्गाबाड़ी मंदिर में मां दुर्गा के दिव्य स्वरूप की भक्ति भाव से आराधना हुई। बंगाली रीति-रिवाजों से पूजन हुआ। बंगाल से आए पुजारियों ने विधान के साथ माता की उपासना की। वहीं, कोरोना गाइडलाइन के तहत इस बार पारंपरिक सिंदूर खेला नहीं हो रहा है। सांकेतिक रूप से विधान पूराकर गिने-चुने लोगों की मौजूदगी में मां भगवती को विदाई दी जाएगी। सदर दुर्गाबाड़ी बंगाली सोसाइटी के पूर्व प्रधान डॉक्टर सुब्रतो सेन ने बताया कि बंगाली समाज के अनुसार विजयदशमी का पर्व सोमवार को है। इसी दिन सिंदूर खेला रिवाज के साथ मां को विदाई दी जाती है। हालांकि, कोविड-19 की गाइडलाइन के तहत सिंदूर खेला से परहेज करने का आह्वान किया गया है। उन्होंने बताया कि सुहागिन महिलाएं एक-दूसरे को सिंदूर लगाती हैं और माता के साथ सिंदूर की होली खेली जाती है। मंगल कामनाओं के साथ माता को विदाई दी जाती है।