मेरठ वालों के फेफड़ों पर प्रदूषण और कोरोना की मार, शहर की हवा हुआ जहरीली









उत्तर प्रदेश के मेरठ शहर की हवा जहरीली हो चुकी है। सांस के जरिए यह जहर हमारे फेफड़ों तक पहुंच रहा है और इसे बेहद कमजोर बना दिया है। प्रदूषण के चलते कमजोर हो चुके इन फेफड़ों पर अब कोरोना ने भी हमला कर दिया है। कोरोना संक्रमित 60 फीसदी मरीज ऐसे मिले जिनके फेफड़े पहले से ही कमजोर थे। ऐसे लोगों में कोरोना का संक्रमण तेजी से बढ़ता है। प्रदूषण और कोरोना की दोहरी मार लोगों को गंभीर रूप से बीमार बना रहा है। शहर के छाती रोग विशेषज्ञों ने फेफड़ों के पुराने मरीजों का सर्वे कर यह निष्कर्ष निकाला है।कोरोना संक्रमण सबसे पहले फेफड़ों में फैलना शुरू होता है। इसकी वजह से सांस लेने में तकलीफ और आक्सीजन की मात्रा शरीर में कम होने लगती है। ऐसे में अस्थमा अटैक, हार्ट अटैक समेत अन्य गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ रहा है। ऑक्सीजन की कमी शरीर के दूसरे अंगों को प्रभावित कर देती है। ऐसे में अगर फेफड़े कमजोर हैं तो मरीजों का जीवन बचाना मुश्किल हो जाता है। कोरोना संक्रमण में अधिकांश मरने वाले में फेफड़े में फैला इंजेक्शन बड़ी वजह रहा है।


फेफड़ों में संक्रमण से 280 मौत
कोरोना से अब मौत 280 इन मरीजों में अधिकांश की मौत फेफड़ों में फैले संक्रमण की वजह से हुई है। इसकी वजह यह पहले से फेफड़ों की बीमारी की चपेट में थे। या फिर इनके फेफड़े कमजोर थे जो जिसकी वजह से कोरोना संक्रमण तेजी से बढ़ा इनकी मौत हो गई।


क्या कहते हैं विशेषज्ञ
प्रदूषण के कण सांस द्वारा फेफड़ों में पहुंच जाते हैं। प्रदूषण की वजह से प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो जाती है जो फेफड़ों की बीमारियों का कारण है। प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होने पर कोरोना संक्रमण की आशंका बढ़ जाती है। 


- डॉ. अनिल कपूर, वरिष्ठ चेस्ट सर्जन


प्रदूषण में फैले सूक्ष्म कण कई बार सांस नलिका में सूजन करने के साथ ही रक्त में भी पहुंच जाते हैं। ये ब्रेन के न्यूरॉन्स को भी डिस्टर्ब कर सकते हैं। हवा में फैले प्रदूषण तत्व से अस्थामा, सीओपीडी, दमा के मरीजों को सबसे ज्यादा परेशानी हो रही है। - डॉ. वीएन त्यागी, चेस्ट फिजीशियन