लापरवाही: गांव और शहर के बीच लटका 75 पंचायतों का विकास









शहरी सीमा में शामिल हुईं राजधानी की 75 पंचायतें बीते सात माह से गांव व शहर के बीच त्रिशंकु बने झूल रही हैं। कोरोना महामारी के दौर में भी इन पंचायतों को न तो केन्द्रीय वित्त का पैसा मिला न राज्य वित्त का। शहरी क्षेत्र में शामिल होने का कोई लाभ भी नहीं मिला है। गांवों में नाली, खड़ंजा, रोड, हैंडपम्प, स्कूल सब धीरे-धीरे बद् से बद्तर स्थित में पहुंच गए हैं। खजाना खाली होने से प्रधान मजबूर हैं। वहीं प्रशासन नियमों से बंधा है। लोग विकास की गुहार लगा रहे हैं।
राजधानी की 75 ग्राम पंचायतें नगर निगम व नगर पंचायत में शामिल हो गई हैं। नगर विकास विभाग गजट नोटिफिकेशन कर चुका है। कोरोना के कारण पंचायती राज विभाग से डीनोटिफिकेशन की औपचारिकता बची है। इसलिए तकनीकी तौर पर इनकी पंचायत की हैसियत बरकरार है। यही वजह रही कि इन पंचातयों को नए वित्तीय वर्ष (2020-21) में केन्द्रीय व राज्य वित्त आयोग से एक पैसा नहीं मिला। जबकि नगर निगम ने तो अभी इन गांवों की ओर नजर भी नहीं दौड़ाई है। उत्तरधौना के प्रधान संदीप सिंह रिंकू बताते हैं कि खाता खाली हैं। इसके बावजूद सरकार सितम्बर तक बचा पैसा खर्च करने के लिए दो बार कार्यकाल बढ़ा चुकी है। विकास की बात करने पर अधिकारी गेंद राज्य सरकार के पाले में फेंक देते हैं। रोड, नाली, हैंडपम्प की मरम्मत तक नहीं हो पा रही है।
शहर में शामिल हुई पंचायतें: चिनहट ब्लाक - 26, सरोजनीनगर -23, मोहनलालगंज - 5, गोसाईंगंज- 3, बीकेटी - 9, काकोरी - 9


इन गांवों में है राजधानी की 10 फीसदी आबादी 
 शहरी सीमा से सटे ये 75 गांव ऐसे हैं जहां बीते 10 वर्षों से निजी कॉलोनियों का विकास सबसे तेजी से हुआ है।  इसका परिणाम है कि इन गांवों की आबादी छह लाख के आंकड़े को पार कर गई है। यानी राजधानी की 10 फीसदी आबादी इन गांवों में बसती हैं। वोटरों के लिहाज से 2015 में यहां करीब 2.60 लाख वोटर थे। वहीं 2011 की जनगणना में जनसंख्या तीन लाख से अधिक थी।