इस दिशा में दरवाजा होता है शुभ, नौकरी में होती है तरक्की और होता है धनलाभ

घर का द्वार बनाने के लिए वास्तु शास्त्र में 32 पदों का वर्णन किया गया है। वाराहमिहिर के समरांगण सूत्रधार ग्रंथ के अनुसार 32 पदों में से हम आपको बताएंगे उत्तर दिशा के आठ पद और उनसे जीवन में पड़ने वाले असर के बारे में। प्रत्येक दिशा में आठ-आठ पद के हिसाब से कुल 32 पद होते हैं। वास्तु में इन 32 पदों का बेहद अहम योगदान है।एन-1 : उत्तर-पश्चिम से आरंभ करके पहला पद का नाम रोग है। इस स्थान पर द्वार बनाने से व्यक्ति घर से बाहर रहता है। शत्रुओं से परेशानी मिलती है। कार्यों में अनावश्यक बाधाओं का सामना करना पड़ता है।
एन-2: उत्तर  दिशा का दूसरा पद नाग कहलाता है। इस पद पर द्वार बनाना अशुभ होता है। शत्रु संख्या में वृद्धि होती है। लोग ईर्ष्या करते हैं और हानि पहुंचाने की चेष्टा करते हैं। अनुचित खर्चे होते रहते हैं। इससे पर्याप्त धन का अभाव रहता है।
एन-3: उत्तर दिशा का तीसरा पद मुख्य है। ‌यह स्थान द्वार के लिए बहुत शुभ होता है। यहां द्वार होने पर घर में हमेशा मंगल कार्य होते हैं। धन लाभ, पुत्र लाभ और व्यापार में वृद्धि होती है। उत्तर दिशा का यह पद बहुत ही शुभ माना गया है।
एन-4: उत्तर दिशा का चौथे पद का नाम भल्लाट है। यह पद द्वार बनाने के लिए बहुत शुभ है। घर के सदस्यों को व्यवसाय या नौकरी की नए नए अवसर प्राप्त होते हैं। प्रचुर मात्रा में धन लाभ होता है। इस स्थान पर भगवान कुबेर का वास है अतः निरंतर धन वृद्धि होती रहती है। तिजोरी धन से भरी रहती है।


एन-5:  उत्तर दिशा का  पांचवा पद सोम कहलाता है। यह स्थान भी द्वार के लिए बहुत शुभ है। समृद्धि के द्वार खुल जाते हैं। धनिक प्रवृत्ति की चाह मन में हो जाती है। घर में धार्मिक कार्यों की अधिकता होती है। ऐसे घरों में धन की निरंतर बरसात सी होती रहती है।
एन-6:  उत्तर दिशा का छठा पद सर्प कहलाता है। इस स्थान पर द्वार बनाना अशुभ माना गया है। घर के सदस्यों का व्यवहार समाज के प्रति अच्छा नहीं रहता। झगड़े होते रहते हैं। परस्पर संबंधों में मधुरता नहीं रह पाती है। इस दिशा के द्वार वाले में रहने वाले लोग अवसरवादी होते हैं।
एन-7:  यह पद उत्तर दिशा का सातवां पद है। इसका नाम अदिति है। उस पद पर द्वार होने से कार्य में रुकावट आती है। महिला सदस्य बीमार रहते हैं या स्वछन्द प्रवृत्ति के होते हैं।  ऐसे घरों के अधिकतर पुत्र, पुत्रियां  इंटर कास्ट मैरिज कर लेते हैं। माता-पिता अथवा बड़ों का सम्मान ऐसे घरों में नहीं हो पाता है। ऐसे स्थान पर द्वार बनाने से बचना चाहिए।
एन-8:  वास्तु के अनुसार उत्तर दिशा का यह अंतिम पद है। इसका नाम दिति है। यद्यपि यह स्थान ज्यादा शुभ नहीं माना गया है। किंतु अन्य स्थान न मिलने से इस स्थान पर भी द्वार बना सकते हैं। ऐसे घरों में धन आता है, लेकिन बचत नहीं हो पाती  है। सामाजिक एवं पारिवारिक जिम्मेदारी के कारण व्यक्ति बहुत ही व्यस्त रहता है।