Dhanteras 2020: जब किसान के घर लक्ष्मी जी को छोड़ अकेले क्षीरसागर चले गए थे भगवान विष्णु, धनतेरस से जुड़ी ये पौराणिक कथा

दिवाली से दो दिन पहले कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को धनतेरस मनाते हैं। इस साल धनतेरस 13 नवंबर 2020 को है। इस दिन मां लक्ष्मी और भगवान कुबेर की पूजा की जाती है। धनतेरस को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। जिनमें से कुछ मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु को लेकर हैं तो कुछ कुबेर देवता को लेकर हैं। धनतेरस से जुड़ी ये एक पौराणिक कथा-


कहा जाता है कि एक बार भगवान विष्णु मृत्युलोक में विचरण करने के लिए आ रहे थे। भगवान विष्णु के साथ चलने का तब लक्ष्मी जी ने भी आग्रह किया। तब विष्णु जी ने कहा कि यदि मैं जो बात कहूं तुम अगर वैसा ही मानो तो साथ ले चलूंगा। भगवान विष्णु की बात मानने के लिए मां लक्ष्मी तैयार हो गईं और भगवान विष्णु के साथ भूमंडल पर आ गईं। कुछ देर बाद एक जगह पर पहुंचकर भगवान विष्णु ने लक्ष्मी जी से कहा कि जब तक मैं न आऊं तुम यहां ठहरो। मैं दक्षिण दिशा की ओर जा रहा हूं और तुम मत आना। विष्णुजी के जाने पर लक्ष्मी जी के मन में सवाल उठा कि आखिर दक्षिण दिशा में ऐसा क्या है कि भगवान स्वंय चले गए और मुझे आने से इनकार कर दिया।


कहते हैं कि लक्ष्मी जी भी भगवान विष्णु के पीछे-पीछे चल पड़ीं। आगे जाने पर मां लक्ष्मी को सरसों का खेत दिखा। सरसों के सुंदर-सुंदर फूलों को देखकर माता मंत्रमुग्ध हो गईं और फूलों से अपना श्रृंगार करने के बाद आगे बढ़ीं। आगे जाने पर एक गन्ने के खेत से लक्ष्मी जी गन्ने तोड़कर रस पीने लगीं।


तभी भगवान विष्णु वहां आ जाते हैं और माता लक्ष्मी को देखकर क्रोधित हो जाते हैं। भगवान ने माता से कहा कि मैंने तुम्हें आने से मना किया था, लेकिन तुमने मेरी बात नहीं मानी और किसान की चोरी का अपराध कर बैठी। अब तुम अपराध के जुर्म में इस किसान की बारह साल तक सेवा करो। ऐसा कहकर भगवान उन्हें छोड़कर क्षीरसागर चले गए। तब लक्ष्मी जी उस गरीब किसान के घर रहने लगीं।


एक दिन लक्ष्मी जी ने देवी लक्ष्मी की मूर्ति बनाई और लक्ष्मी जी ने उस किसान की पत्नी से कहा कि तुम स्नान कर पहले मेरी बनाई गई इस देवी लक्ष्मी का पूजन करो। इसके बाद ही कोई दूसरा काम करना, ऐसा करने से जो तुम मांगोगी मिलेगा। किसान की पत्नी ने ऐसा ही किया। मां लक्ष्मी की कृपा से किसान के घर में किसी भी चीज की कमी न रही। किसान ने 12 साल बड़े खुशहाली से बिता गए। 12 साल पूरे होने के बाद लक्ष्मी जी जाने के लिए तैयार हुईं।


विष्णुजी माता लक्ष्मी को लेने आए तो किसान ने उन्हें भेजने से इनकार कर दिया। तब भगवान ने किसान से कहा कि इन्हें कोई जाने देना नहीं चाहता लेकिन इनका स्वभाव चंचल है और यह कहीं नहीं ठहरतीं। इनको बड़े-बड़े नहीं रोक सके। इनको मेरा शाप था इसलिए बारह साल से तुम्हारी सेवा कर रही थीं। अब सेवा का समय पूरा हो चुका है। किसान ने जिद करते हुए कहा कि वह लक्ष्मी जी को नहीं जाने देगा।


तब किसान से मां लक्ष्मी ने कहा कि अगर तुम मुझे अपने घर में रोकना चाहते हो तो कल तेरस है। तुम अपने घर की साफ-सफाई करके रात में घी का दीपक जलाना। शाम के समय मेरा पूजन करना और एक तांबे के कलश में रुपए भरकर मेरे लिए रखना, मैं उस कलश में निवास करूंगी। मैं पूजा के दौरान तुम्हें दिखाई नहीं दूंगी, लेकिन पूजन से एक साल तक मैं तुम्हारे घर से नहीं जाऊंगी। किसान ने अगले दिन लक्ष्मीजी की विधिवत पूजा की और फलस्वरूप उसका घर धन-धान्य से भर गया। इसी वजह से हर वर्ष तेरस के दिन लक्ष्मीजी की पूजा होने लगी।