1930 के दशक में दुर्गा पूजा का त्योहार पटना में था सांस्कृतिक कार्यक्रम

बिहार की राजधानी पटना में 1930 के दशक में दुर्गा पूजा का त्योहार सांस्कृतिक कार्यक्रम की तरह मनाया जाता था, जब इस अवसर पर गीत-संगीत कार्यक्रम, नाटकों का मंचन से ले कर स्कूलों में शतरंज प्रतियोगिताएं तक हुआ करती थी।शहर के बुजुर्गों के मन में उस वक्त की और यहां तक कि 60 और 70 के दशक की वे यादें आज भी ताजा हैं, जब दुर्गा पूजा के अवसर पर शाम से जो गीत संगीत का कार्यक्रम शुरू होता था, वह अगले दिन सुबह जा कर ही समाप्त होता था। 
जालान परिवार के आदित्य जालान (43) के घर में एक डिब्बा है, जिसमें पुराने पत्र और त्योहारों की बधाई संदेश वाले ग्रीटिंग कार्ड्स हैं। ये पत्र और कार्ड्स उनके पर दादा राधा कृष्ण जालान को प्रतिष्ठित लोगों ने भेजे थे। राधा कृष्ण जालान कारोबारी थे और अपने वक्त के जाने माने व्यक्ति थे।
आदित्य ने 'पीटीआई-भाषा से बातचीत में कहा ,''हमें 1936 के अम्मावन और रंका (अब झारखंड के पलामू जिले में) के जमींदार परिवारों , 1948-51 के बीच नेपाल के प्रधानमंत्री रहे महाराजा सर मोहन शमशेर जंग बहादुर राणा द्वारा भेजे गए दुर्गा पूजा के दुर्लभ ग्रीटिंग्स मिले हैं। दिलचस्प बात यह है कि तीनों कार्ड काफी मिलते जुलते हैं।सभी कार्ड में महिषासुर का मां दुर्गा वध करती दिखाई दे रहीं हैं। जालान कहते हैं,''देखिए कैसे लोग 1930में और बाद के दशकों में दुर्गा पूजा मनाते थे। नाटकों का मंचन होता था, खेल होते थे और संगीत के कार्यक्रम होते थे और इस प्रकार के दस्तावेज हमें उस वक्त के पटना की कल्पना करने में मदद करते हैं। 
इसे दिलचस्प संयोग ही कहेंगे कि 1936 में दशहरा 25 अक्टूबर को था और इस वर्ष यानी 2020 को भी दशहरा इसी तारीख को पड़ रहा है।
अनेक बुजुर्गों ने बताया कि पुराने समय में दुर्गा पूजा के वक्त शहर में गीत संगीत और कव्वालियों का दौर चलता था, जो सांस्कृतिक रूप से समृद्ध पटना की पहचान था।