शरीर पर निकल आएं पानी भरे दाने तो न करें नजरअंदाज, हो सकता है हर्पीस

कई बार शरीर पर छोटे-छोटे पानी भरे दाने निकल आते हैं। अगर इन्हें नजरअंदाज किया तो यह हर्पीस का कारण बन सकते हैं। आखिर क्या है यह बीमारी, इसके लक्षण और इलाज। यहां विस्तार से जानें। साथ ही जानें हर्पीस से बचाव के तरीके।





कई बार हमारे शरीर के विभिन्न हिस्सों में छोटी-छोटी फुंसियां निकल आती हैं। हालांकि हम इन्हें एलर्जी या फिर फंगल इंफेक्शन की निशानी मान लेते हैं और संपूर्ण जांच कराने के बजाय नजरअंदाज कर देते हैं। लेकिन ऐसा करना खतरनाक हो सकता है। शरीर पर निकलने वाली ये छोटी-छोटी फुंसियां आगे चलकर हर्पीस का लक्षण बन सकती हैं। यह एक ऐसी बीमारी है जिसमें शरीर पर छोटे-छोटे पानी से भरे दाने निकल आते हैं जो बाद में शरीर के अन्य हिस्सों में फैल जाते हैं और दिनोंदिन साइज में बढ़ते रहते हैं।



एक रिसर्च के मुताबिक, यह बीमारी 40 साल के बाद अधिक होती है। हर्पीस वेरिसेला जोस्टर वायरस के कारण होती है। चूंकि यह एक संक्रामक बीमारी है इसलिए इसमें अत्यधिक सावधानी बरतना काफी जरूरी होता है। वैसे तो यह बीमारी 40 की उम्र के बाद किसी भी व्यक्ति को और कभी भी हो सकती है, लेकिन माना जाता है कि इसका वायरस उस व्यक्ति को सबसे ज्यादा प्रभावित करता है जिसे पहले चिकन पॉक्स हो चुका है। अगर चिकन पॉक्स का वायरस यानी वेरिसेला जोस्टर वायरस पहले से ही शरीर में मौजूद है तो हर्पीस की बीमारी हो सकती है।



प्रेग्नेंसी से लेकर डायबीटीज में फायदा करती है ग्वार फली








  • ग्वार फली (क्लस्टर बीन) सब्जी से ज्यादा एक औषधि है। इसमें आमतौर पर प्रोटीन और घुलनशील फाइबर पाया जाता है। इसके अलावा इसमें विटमिनन के, विटमिन सी, विटमिन ए, फॉलीऐट्स और कार्बोहाइड्रेट्स के साथ प्रचुर मात्रा में खनिज, फॉस्फोरस, कैल्शियम, आयरन, वसा और पोटेशियम भी पाया जाता है। इसलिए यह स्वास्थ्य के लिए बेहर फायदेमंद होती है। इसके और क्या फायदे हैं आइए जानते हैं:




  • ​डायबीटीज
    ग्वार फली में ग्लाइको न्यूट्रिएंट होते हैं जो शरीर में रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करते हैं। (फोटो साभार: getty)




  • प्रेग्नेंसी
    ग्वार फली गर्भवती महिलाओं में आयरन और कैल्शियम की कमी को पूरा करती है। इसमें मौजूद फॉलिक ऐसिड भ्रूण की कई समस्याओं से रक्षा करता है। इसमें मौजूद विटमिन के भ्रूण के विकास में मदद करता है।




  • मजबूत हड्डियां
    ग्वार फली में कैल्शियम, विटामिन के व फास्फोरस होता है, जो हड्डियों को मजबूत बनाते हैं। (फोटो साभार: getty)




  • ​ब्लड प्रेशर
    ग्वार फली के हाइपोग्लाइसेमिक और हाइपोलिपिडेमिक गुण उच्च रक्तचाप से पीड़ित लोगों के लिए लाभदायक हैं। (फोटो साभार: getty)




  • ​हृदय रोग
    ग्वार फली खराब कोलेस्ट्रॉल के रक्त स्तर को कम करता है। इसमें डाइटरी फाइबर, पोटेशियम और फोलेट की उपस्थिति हृदय संबंधी जटिलताओं से बचाता है।आयुर्वेदाचार्य एसके मिश्रा के अनुसार, ग्वार फली को एक सब्जी के रूप न देखकर उसे कुदरत द्वारा प्रदान की गई एक ऐसी दवा माना जाना चाहिए जो हृदय रोगों, ब्ल्ड प्रेशर, डायबिटीजऔर गर्भावस्था में बहुत लाभकारी होती है। (फोटो साभार: getty)









हर्पीस के प्रकार और लक्षण
हर्पीस दो तरह का होता है- HSV-1 यानी हर्पीस टाइप 1 या ओरल हर्पीस और दूसरा HSV-2 यानी जिनाइटल हर्पीस या हर्पीस टाइप 2। बात करें इस बीमारी के लक्षणों की, तो कई लोगों में महीनों तक तो इसके लक्षण नजर ही नहीं आते हैं। इसीलिए यह बीमारी जानलेवा साबित हो सकती है। वहीं कुछ लोगों में 10 दिनों के अंदर ही हर्पीस अपना रूप दिखाना शुरू कर देता है।

"अगर शरीर पर पानी भरे दानें निकलें तो उन्हें फोड़ें नहीं और न ही हाथ लगाएं। फोड़ने पर उनसे निकलने वाला पदार्थ शरीर के अन्य हिस्सों या फिर कपड़ों पर लग सकता है, जिससे वह शरीर के अन्य हिस्सों में भी फैल सकता है। ऐसी स्थिति में रोगी को अन्य लोगों से दूर रखना चाहिए। उसके कपड़े, बर्तन यहां तक कि उसके इस्तेमाल की चीजें अलग रखनी चाहिए और वह साफ-सुधरी होनी चाहिए।'"-डॉ. शिव कुमार, फर्टिलिटी स्पेशलिस्ट और यौन रोगों के जानकार


फर्टिलिटी स्पेशलिस्ट और यौन रोगों के जानकार डॉ. शिव कुमार के अनुसार, हर्पीस की स्थिति में प्राइवेट पार्ट और शरीर के अन्य हिस्सों में पानी भरे दाने निकल आते हैं। जैसे ही ये थोड़े बड़े होते हैं, फूट जाते हैं और जब यही पानी शरीर के अन्य हिस्से में लगता है तो वहां भी संक्रमण फैल जाता है। उन्होंने कहा, 'अगर शरीर पर पानी भरे दानें निकलें तो उन्हें फोड़ें नहीं और न ही हाथ लगाएं। फोड़ने पर उनसे निकलने वाला पदार्थ शरीर के अन्य हिस्सों या फिर कपड़ों पर लग सकता है, जिससे वह शरीर के अन्य हिस्सों में भी फैल सकता है। ऐसी स्थिति में रोगी को अन्य लोगों से दूर रखना चाहिए। उसके कपड़े, बर्तन यहां तक कि उसके इस्तेमाल की चीजें अलग रखनी चाहिए और वह साफ-सुधरी होनी चाहिए।'

अन्य लक्षणों की बात करें, तो इसमें:

हर्पीस की स्थिति में प्राइवेट पार्ट और शरीर के अन्य हिस्सों में पानी भरे दाने निकल आते हैं। जैसे ही ये थोड़े बड़े होते हैं, फूट जाते हैं और जब यही पानी शरीर के अन्य हिस्से में लगता है तो वहां भी संक्रमण फैल जाता है।



  • पूरे शरीर में दर्द और खुजली होती है। मुंह के अलावा शरीर के अन्य हिस्सों में घाव हो जाते हैं।



  • हमेशा बुखार रहता है और लिंफ नोड्स काफी बड़ी हो जाती हैं।

  • शरीर पर जगह-जगह लाल रंग के चकते उभर आते हैं।

  • इन दानों के निकलने के पहले रोगी को दर्द होना शुरू हो जाता है।

  • दर्द होने के कुछ दिनों के बाद उस जगह की त्वचा पर लाल-लाल फुंसियां निकलनी शुरू हो जाती हैं। धीरे-धीरे इन दानों में पानी भर जाता है।

  • इसके अलावा जोड़ों में दर्द, सिरदर्द और थकान भी होने लगती है। फुंसियों में दर्द होना इस बीमारी का प्रमुख लक्षण है। कई रोगियों में यह दर्द काफी तेज होता है।

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हर्पीस के कारण
जब हर्पीस का वायरस किसी संक्रमित व्यक्ति की त्वचा की सतह पर मौजूद होता है तो वह उस व्यक्ति के संपर्क में आने वाले अन्य व्यक्ति में प्राइवेट पार्ट, एनस या फिर मुंह के जरिए आसानी से फैल सकता है। हालांकि यह भी समझने की जरूरत है कि संक्रमित व्यक्ति द्वारा वॉशबेसिन, टेबल या किसी चीज को छुए जाने से यह इंफेक्शन नहीं फैलता। असुरक्षित यौन संबंधों और एनल सेक्स की वजह से भी हर्पीस की बीमारी हो जाती है।
अगर किसी ऐसे व्यक्ति के साथ ओरल सेक्स किया जाए जिसके मुंह में घाव हैं तो भी यह बीमारी गिरफ्त में ले सकती है। इसके अलावा सेक्स टॉयज शेयर करने और किसी संक्रमित व्यक्ति के साथ यौन संपर्क से भी हर्पीस हो जाता है।
बारिश के मौसम और सर्दियों में हर्पीस का अधिक खतरा
हर्पीस का वायरस हर समय वातावरण में मौजूद रहता है। सर्दियों और बरसात में इसके केस ज्यादा देखने को मिलते हैं। यह बीमारी शरीर के किसी भी अंग पर देखने को मिल सकती है। कई बार लोग इसे गंभीरता से नहीं लेते हैं। अगर समय रहते हुए ध्यान नहीं दिया जाए तो इसका इंफेक्शन आंख और नाक की तरफ बढ़ने लगता है। आमतौर पर इसके इंफेक्शन की शुरुआत सबसे ज्यादा चेहरे और चेस्ट पर देखने को मिलती है। एक बार किसी मरीज को यह इंफेक्शन लगने के बाद पूरी तरह से खत्म नहीं किया जा सकता है। बार-बार इसके लक्षण उभरने पर इसे केवल ठीक ही किया जा सकता है।



ऐसी लाइफस्टाइल पहुंचा रही है अनदेखे नुकसान








  • टेक्नॉलजी और जीवनशैली के तालमेल ने जहां हमें कई सुविधाएं दी हैं, तो वहीं कई अनदेखे नुकसान भी पहुंचाए हैं। एयर कंडीशन में लंबे समय तक वक्त गुजारना हो या घंटों मोबाइल फोन पर बात करना, हमारे शरीर को इसके कारण कई नुकसान होते हैं जो आमतौर पर दिखाई नहीं देते। ऐसे ही कुछ नुकसानों के बारे में जानिए यहां...




  • आर्टिफिशल जूलरी कैरी करना
    स्किन एक्सपर्ट डॉ. भारती पटेल बताती हैं कि आर्टिफिशल जूलरी में निकेल होता है जिससे स्किन में ऐलर्जी की समस्या आती है। डॉ. पुराणिक कहती हैं, ‘कई बार आर्टिफिशल जूलरी में छोटे-छोटे छेद होते हैं, जहां गंदगी और ज्यादा नमी बनती है और इससे स्किन में खुजली की प्रॉब्लम होती है। बाजार में मिलने वाली आर्टिफिशियल अंगूठियां और बालियां स्किन को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाती हैं।’ डॉ. की मानें, तो अगर आपको आर्टिफिशल जूलरी पहननी ही है, तो इससे पहले स्किन पर प्रोटेक्टिव क्रीम लगा लें, ताकि आपकी स्किन का मेटल से होने वाले नुकसान से बचाव हो।




  • रेग्युलर वैक्सिंग
    डॉ. किरण गोडसे बताती हैं, कई बार रेगुलर वैक्सिंग करवाने की वजह से भी स्किन में खुजली और लालपन जैसी समस्याएं पैदा हो जाती हैं। वह कहती हैं, ‘रेग्युलर वैक्सिंग करवाने से आपकी नैचरल स्किन डैमेज हो सकती है जिसकी वजह से आपको खुजली, धूप से परेशानी, पिग्मेंटेशन जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। इसके नुकसान से बचने के लिए आप वैक्सिंग के बाद कैलेमाइन लोशन का प्रयोग जरूर करें और थोड़ी देर शरीर को खुला छोड़ दें।




  • एयर कंडीशन में घंटों बैठना
    लॉन्ग कार ड्राइव हो या रात की नींद, बिना एसी के दोनों ही मुश्किल लगते हैं। इसमें भी ज्यादा गर्मी पर ज्यादा ठंडा करने के लिए एसी का टेम्परेचर बहुत कम कर दिया जाता है जिससे रूम चिल्ड हो जाता है। कॉस्मेटिक फिजिशन डॉ. मंजरी पुराणिक की मानें, तो दिन का ज्यादा वक्त एसी में बिताना न सिर्फ स्किन में ड्राइनेस को बढ़ावा देता है, बल्कि इससे पूरी सेहत पर भी बुरा असर पड़ता है।




  • अगर खुजली हो तो...
    डॉ. मंजरी कहती हैं, ‘अगर आपको पहले से ही खुजली या स्किन की कोई अन्य कोई समस्या है, तो एयर कंडीशन आपकी त्वचा की नैचरल मॉइस्चर बैलेंस को बाधित करके इस समस्या को और बढ़ा सकता है।’ वह आगे कहती हैं, ‘अगर आपको इनमें से कोई समस्या नहीं हैं, तो भी ज्यादा वक्त तक एसी में रहने से आपकी त्वचा में खुजली और पपड़ी निकलने की समस्या पैदा हो सकती है।’




  • मोबाइल फोन पर देर तक बातचीत
    मोबाइल फोन पर घंटों बात करने की वजह से आपको मोबाइल फोन डर्मटाइटिस या ऐलर्जिक कॉन्टेक्ट डर्मटाइटिस हो सकता है। आमतौर पर माना जाता है कि फोन के निकल से स्किन प्रॉब्लम हो सकती हैं, लेकिन इसके साथ ही फोन से निकलने वाली इलैक्ट्रोमैग्नेटिक रैडिएशन्स भी आपकी स्किन में ऐलर्जिक रिएक्शन कर सकती हैं। डॉ. पुराणिक बताती हैं, ‘मोबाइल फोन को घंटों तक अपनी स्किन से लगाकर रखने पर सूजन, लालपन, खुजली या जलन भी हो सकती है।’




  • हो सकती है स्किन प्रॉब्लम
    मोबाइल फोन पर घंटों बात करने की वजह से आपको मोबाइल फोन डर्मटाइटिस या ऐलर्जिक कॉन्टेक्ट डर्मटाइटिस हो सकता है। आमतौर पर माना जाता है कि फोन के निकल से स्किन प्रॉब्लम हो सकती हैं, लेकिन इसके साथ ही फोन से निकलने वाली इलैक्ट्रोमैग्नेटिक रैडिएशन्स भी आपकी स्किन में ऐलर्जिक रिएक्शन कर सकती हैं। डॉ. पुराणिक बताती हैं, ‘मोबाइल फोन को घंटों तक अपनी स्किन से लगाकर रखने पर सूजन, लालपन, खुजली या जलन भी हो सकती है।’









हर्पीस का इलाज
इसके इलाज के लिए कुछ घरेलू तरीके भी अपनाए जा सकते हैं, जैसे कि हल्के गरम पानी में थोड़ा सा नमक डालकर नहाने से फायदा मिलता है। प्रभावित हिस्से पर पेट्रोलियम जैली लगाने से भी राहत मिलती है। इसके अलावा जब तक हर्पीस के लक्षण पूरी तरह से खत्म न हो जाएं तब तक यौन संबंध या किसी भी प्रकार की यौन क्रिया में शामिल न हों।

हालांकि घरेलू इलाज के साथ-साथ डॉक्टरी इलाज जरूर कराएं, नहीं तो स्थिति गंभीर हो सकती है। हर्पीस के इलाज के लिए ऐंटी-वायरस मेडिसिन एसाइक्लोविर दवाई रोगी को दी जाती है ताकि उसके शरीर में उपस्थित वायरस नष्ट हो जाए। इसके अलावा फैमसाइक्लोविर और वैलासाइक्लोविर दवाइयां भी रोगी को दी जा सकती हैं। इन दवाइयों के साथ रोगी को सपोर्टिव ट्रीटमेंट भी दिया जाता है। लेकिन इन दवाइयों का सेवन डॉक्टर की सलाह के बिना बिल्कुल भी न करें क्योंकि इनका असर हर रोगी पर अलग-अलग तरह से हो सकता है।

हर्पीस से बचाव


  • हर्पीस का वायरस किसी व्यक्ति को अपनी चपेट में न ले इसके लिए कुछ सावधानियां और बचाव करने की जरूरत है। जैसे कि:

  • सुरक्षित यौन संबंध बनाएं। सेक्स के दौरान कॉन्डम का इस्तेमाल करें।

  • संक्रमित व्यक्ति के साथ यौन संबंध बचाने से बचें और अगर मुंह में घाव हो तो किस या ओरल सेक्स न करें।

  • इसके अलावा एक से अधिक सेक्शुअल पार्टनर होने से भी हर्पीस का वायरस अटैक कर सकता है।