दिल्ली मेरठ एक्सप्रेस-वे घोटालेबाजों द्वारा बनाई गई समिति के नाम सैकड़ों बीघा जमीन के पट्टे

क्लू टाइम्स, सुरेन्द्र कुमार गुप्ता। 9837117141



गाजियाबाद
: दिल्ली मेरठ एक्सप्रेस-वे की जमीन का मुआवजा लेने और भूमि को सीलिग से बचाने के लिए 3डी का नोटिस जारी होने के बाद भी बैनामा करने के आरोपितों ने वीर वधुओं का हक भी मारा है। इसमें प्रशासनिक अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों की भी साठगांठ रही है। जैसे-जैसे घोटाले की फाइल खुल रही है, वैसे-वैसे घोटालेबाजों का कच्चा चिट्ठा भी खुल रहा है। एक तरफ जिस वक्त जिले में भूमिहीन भूमि के लिए तरस रहे थे, उस वक्त घोटालेबाजों द्वारा बनाई गई समिति के नाम सैकड़ों बीघा जमीन के पट्टे किए गए थे।

सरकारी जमीन पर घोटालेबाजों की नजर कई वर्षों से थी, इस वजह से ही उन्होंने तीन समितियां बनाई। इसमें अपने परिवार के लोगों को सदस्य बनाया। हैरत की बात यह है कि अशोक संयुक्त सहकारी समिति के नाम 24 मार्च 1972 को एकमुश्त 337 बीघा जमीन धौलाना में और 24 जुलाई 1965 को 60 बीघा जमीन का रसूलपुर सिकरोड़ा में पट्टा किया गया था। पट्टा किस आधार पर किया गया, यह अब तक स्पष्ट नहीं हो सका है। नियम के तहत जमीन का आवंटन जिला प्रशासन द्वारा सबसे पहले वीर वधुओं को, फिर भूमिहीन अनुसूचित जाति के लोगों को, इसके बाद भूमिहीन अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों को फिर भूमिहीन सामान्य जाति के लोगों को किया जाता है, इसके बाद समितियों का नंबर आता है। उसमें भी इतनी जमीन का पट्टा नहीं किया जा सकता है।

2006 में पकड़ में आया था अवैध रूप से हुए पट्टे का मामला: अशोक संयुक्त सहकारी समिति के नाम सैकड़ों बीघा जमीन का अवैध रूप से पट्टा किए जाने का मामला वर्ष 2006 में प्रकाश में आया था। उस वक्त इस मामले में चार एफआइआर तत्कालीन लेखपाल धर्मवीर सोलंकी, राकेश कुमार शर्मा और सुबोध शर्मा द्वारा दर्ज कराई गई थी। हालांकि समिति के कई सदस्यों की उस वक्त तक मृत्यु हो चुकी थी, कुछ लोगों के खिलाफ कार्रवाई की गई थी। 2008 में ये चारों मामले एसआइटी को स्थानांतरित कर दिए गए थे। अवैध रूप से हुए पट्टे निरस्त कराने के प्रयास उस वक्त शुरू किए गए थे। बावजूद इसके जब दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेस-वे के लिए जमीन अधिगृहीत होनी शुरू हुई तो उनका बैनामा करना शुरू कर दिया गया। एक तरफ मुआवजा उठाने की तैयारी थी तो दूसरी तरफ जमीन को सीलिग से बचाने के लिए यह तरीका अपनाया गया था।

यह है मामला: दिल्ली मेरठ एक्सप्रेस-वे के लिए गाजियाबाद, हापुड़ और मेरठ में जमीन अधिग्रहण किया गया था। इस संबंध में 2012 में 3डी के तहत अधिसूचना जारी कर दी गई थी। इसके बाद अधिकारियों और रसूखदार लोगों ने अपने पारिवारिक सदस्यों और रिश्तेदारों के नाम जमीन खरीदी थी, जिनमें आर्बिटेशन वाद डाले गए और गाजियाबाद में तत्कालीन जिलाधिकारी निधि केसरवानी और विमल कुमार शर्मा ने तय मुआवजा से अधिक मुआवजा निर्धारित कर दिया था। जिससे जमीन खरीदने वाले कुछ ही माह में करोड़पति बन गए। इनमें गाजियाबाद में कार्यरत रहे तत्कालीन एडीएम भू- अध्याप्ति घनश्याम सिंह की संलिप्तता भी मिली थी, उन्होंने अपने बेटे शिवांग को जमीन खरीदवाई थी। 2004 बैच की आइएएस अधिकारी निधि केसरवानी को इस मामले में निलंबित भी किया जा चुका है। इसके अलावा तथ्यों को छिपाकर बैनामे करने के मामले में अब तक चार रिपोर्ट दर्ज हो चुकी है।